अपकृत्य विधि' के अन्तर्गत भी पर्यावरण के विरुद्ध उपचार प्राप्त है" सविस्तार विवेचना

अपकृत्य विधि’ के अन्तर्गत भी पर्यावरण के विरुद्ध उपचार प्राप्त है” सविस्तार विवेचना कीजिए Remedies are also available in law of torts against environment Pollution. Discuss in detail.

पर्यावरण के विरुद्ध उपचार – कॉमन लॉ इंग्लैण्ड की रुदिजन्य विधि है जिसकी उत्पत्ति न्यायिक निर्णयों से हुई है। पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध कॉमन लॉ उपचार अपकृत्य विधि के अन्तर्गत उपलब्ध है। पर्यावरण प्रदूषण के लिए सबसे महत्वपूर्ण अपकृत्य दायित्वों का विवेचन निम्नलिखित के तहत किया जा सकता है

  1. न्यूसेन्स (Nuisance)
  2. अतिचार (Trespass) 3. उपेक्षा (Negligence)
  3. कठोर दायित्व (Strict Liability)

1.न्यूसेन्स (Nuisance )

यूसेन्स को किसी ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो भूमि, भवन या अन्य सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाता है, न कि अतिचार के समान है। | विनफील्ड के अनुसार एक अपकृत्य के रूप में न्यूसेन्स का तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा भूमि के प्रयोग अथवा उपभोग अथवा उससे सम्बद्ध अथवा उससे सम्बन्धित किसी अधिकार के साथ विधिविरुद्ध हस्तक्षेप है। आराम, स्वास्थ्य अथवा सुरक्षा के साथ किया गया हस्तक्षेप या बाधा के कार्य उपताप के उदाहरण हैं। उपताप शोर, प्रकम्पन, ऊष्मा, धुआँ, गन्ध, जल, गैस, विद्युत प्रवाह, उत्खनन, दुर्गन्ध अथवा रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु के रूप में हो सकता है। न्यूसेन्स के दो प्रकार हैं-

(i) लोक न्यूसेन्स (Public Nuisance)-

लोक न्यूसेन्स (उपताप) एक अपराध है। यह एक ऐसी बाधा है अथवा हस्तक्षेप है जो सामान्य जनता के अधिकार के साथ किया गया रहता है। और एक अपराध के रूप में दण्डनीय है।

(ii) प्राइवेट न्यूसेन्स (Private Nuisance) –

प्राइवेट न्यूसेन्स से तात्पर्य किसी की सम्पत्ति या किसी के नियंत्रण के अधीन किसी चीज के प्रयोग से है। इसके द्वारा सम्पत्ति के स्वामी या सम्पत्ति के भौतिक स्वरूप को नुकसान पहुँचाया जाता है।

2. अतिचार (Trespass)

अतिचार से दैहिक या सांपत्तिक अधिकार से न्यायानुमति के बिना साशय या उपेक्षापूर्वक प्रत्यक्ष हस्तक्षेप अभिप्रेत है। अतिचार का अपकृत्य स्वतः अनुयोज्य है और अतिचार के परिणामस्वरूप क्षति को साबित करने की आवश्यकता नहीं है। अतिचार के अपकृत्य के गठन के लिए दो चीजों को साबित करना आवश्यक है

(i) दैहिक या सांपत्तिक अधिकार के साथ साशय या उपेक्षापूर्वक हस्तक्षेप का होना, और

(ii) ऐसा हस्तक्षेप प्रत्यक्ष हो, न कि परिणामिक उदाहरण के लिए जब क और अपने पड़ोसी ख की भूमि पर साशय या उपेक्षापूर्वक कूड़ा-कचरा फेंकता है या जब क अपने कारखाने का बहिःस्राव ख की भूमि पर निकालता है, तो यह अतिचार के समान है।

3. उपेक्षा (Negligence )

जब सावधानी बरतने का कर्त्तव्य होता है और सावधानी नहीं बरती जाती है जिसका परिणाम किसी अन्य व्यक्ति को अपहानि करने में होता है तो यह कहा जाता है कि यह उपेक्षा है। यह त्रुटि के सिद्धान्त पर आधारित है। उपेक्षा के लिए सफल होने के लिए प्रतिवादी की तरफ से कुछ त्रुटि का होना अपेक्षित है। पर्यावरण के मामलों में उपेक्षा के अपकृत्य का प्रयोग तब किया जाता है जब न्यूसेंस या अतिचार के अपकृत्य उपलब्ध नहीं होते हैं। उपेक्षा के लिए कार्यवाही में सफल होने के लिए यह स्थापित किया जाना आवश्यक है कि उपेक्षा और कारित अपहानि में प्रत्यक्ष सम्बन्ध था। इसके अतिरिक्त यह भी साबित किया जाना अपेक्षित है कि उपेक्षा के दोषी व्यक्ति ने सम्यक् सावधानी नहीं बरती है जिसे बरतने की विधि के अधीन उससे अपेक्षा की गयी थी।

नरेश दत्त त्यागी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, (1995) Suppl. (3) SCC 144 के मामले में तथ्य इस प्रकार थे कि आवासीय क्षेत्र में गोदाम में रासायनिक कीटनाशी रखी गयी थी। कीटनाशी से निकलने वाली भभक (Fumes) संलग्न सम्पत्ति को वातायनी से निःसृत हो गयी जिससे तीन शिशुओं और माता की गर्भ में बच्चे की मृत्यु हो गयी। इसमें यह अभिनिर्धारित किया गया कि यह उपेक्षा का स्पष्ट मामला था।

4. कठोर दायित्व (Strict Liability)

के नियम का प्रतिपादन 1868 में रायलैण्ड्स बनाम फ्लेचर, (1868) 3 HL 130 के मामले में हॉउस ऑफ लाईस द्वारा किया गया था। इस नियम के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपनी भूमि पर कोई खतरनाक वस्तु लाता है और उसको

वहाँ से निकल जाए तो सम्भाव्यतः क्षति कारित कर सकती है, तो ऐसा व्यक्ति उस वस्तु को अपनी भूमि पर अवश्यतः अपनी ही जोखिम पर रखे, और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वह प्रथम दृष्ट्या उस समस्त हानि के लिए उत्तरदायी है जो उस वस्तु के वहाँ से निकल जाने के स्वाभाविक परिणाम से कारित हुई है। कठोर दायित्व का नियम कई अपवादों के अध्यधीन है

  1. दैवकृत,
  2. वादी का स्वयं का दोष,
  3. वादी की सहमति,
  4. तीसरे पक्षकार का कार्य, और
  5. कानूनी प्राधिकारी।

कठोर दायित्व के सिद्धान्त की पर्यावरण प्रदूषण के मामलों में बड़ी उपयोगिता है विशेषकर ऐसे मामलों जहाँ क्षति खतरनाक द्रव्य से रसाव से कारित होती है। इस नियम के लागू होने के लिए दो शर्तों को पूरा किया जाना आवश्यक है। प्रथम भूमि का अस्वाभाविक प्रयोग किया गया हो। द्वितीय, भूमि से किसी खतरनाक वस्तु का निकल जाना हो जो हानि करने के लिए सम्भाव्य है यदि यह निकल जाती है।

यह संविधान भारतीय नागरिकों के लिए उनके मूल अधिकारों के साथ-साथ कुछ मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था भी करता है।” वे कौन से मूल कर्त्तव्य हैं, जिनका पालन करना प्रत्येक भारतीय नागरिक पर बन्धनकारी है?

भारत में उच्चतम न्यायालय ने कठोर दायित्व (Strict liability) को पूर्ण दायित्व (Absolute liability) में परिवर्तित कर दिया है। पूर्ण दायित्व बिना किसी दोष के उत्पन्न होता है तथा इसमें कोई अपवाद भी नहीं है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन एम० सी० मेहता बनाम भारत संघ, AIR 1987 SC 1086 के मामले में किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि

यदि कोई उद्योग किसी ऐसे खतरनाक और स्वभावतः संकटपूर्ण व्यवसाय में रत है जिससे लोगों के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा को भय की सम्भावना है तो उसका यह पूर्ण ( Absolute) तथा अप्रत्यायोजनीय (Non-delegable) कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि उस कार्य से किसी को किसी प्रकार क्षति घटित न हो। यदि उस कार्य से किसी को क्षति होती है तो वह उद्योग उस क्षति की क्षतिपूर्ति के लिए पूर्णतया दायी होगा तथा वह अपने दायित्व का इस दलील से निवारण नहीं कर सकता कि उसकी कोई उपेक्षा नहीं थी। इसके अतिरिक्त यह भी निर्णय दिया गया कि रायलैण्ड्स बनाम फ्लैचर के नियम का अपवाद इस पूर्ण दायित्व के नियम पर लागू नहीं होंगे। क्योंकि विशिष्ट न्यायालय ही इस क्षति के लिए प्रतिकर प्रदान कर सकता है, इसलिए उच्चतम न्यायालय ने यह निदेश दिया कि गैस पीड़ित व्यक्तियों की ओर से प्रतिकर प्राप्त करने के लिए सम्बन्धित न्यायालय में वाद लाया जाय।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top