पुनर्जागरण इटली से ही क्यों आरम्भ हुआ? पुनर्जागरण के प्रभाव। -

पुनर्जागरण इटली से ही क्यों आरम्भ हुआ? पुनर्जागरण के प्रभाव।

हीलो रीडर्स कैसे हैं आप सभी? उम्मीद करते हैं की आप सभी के प्रतियोगी परुक्षाओं की तैयारी सही रूप से चल रही होगी। दोस्तों आज के इस आर्टिकल के माध्यम से आप सभी के लिए ‘पुनर्जागरण इटली से ही क्यों आरम्भ हुआ? पुनर्जागरण के प्रभाव‘ इसके बारे में आप सभी के लिए पूरा डिटेल में हम आर्टिकल शेयर कर रहे हैं जिसे आप सभी को अवश्य पूरा आर्टिकल पढना चाहिए।

इसे भी पढ़ें 👉 महाजनपद क्या है? छठी शताब्दी ई.पू. षोडश 16 महाजनपदों का उल्लेख।

इटली में पुनर्जागरण के कारण

पुनर्जागरण के आरम्भ के संदर्भ में सर्वप्रथम अलविजेनसियम बुद्धिवादी आन्दोलन का उल्लेख किया जा सकता है। दुर्भाग्यवश धार्मिक प्रतिक्रियावाद के फलस्वरूप इस आन्दोलन का असामयिक अन्त हो गया। इसी तरह फ्रेड्रिक द्वितीय और दाँते ने पुनर्जागरण के आगमन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। परन्तु पुनर्जागरण का वास्तविक प्रारम्भ इटली में हुआ, ठीक उसी तरह से जैसे धर्म सुधार का आन्दोलन जर्मनी से हुआ। इसके कई कारण थे-

(क) पुनर्जागरण के लिए इटली का वातावरण अत्यन्त अनुकूल था इटालियन नगर पुनर्जागरण के प्रोत्साहक थे। भूमध्य सागर के मध्य में स्थित होने के कारण वहाँ वाणिज्य व्यापार की असाधारण हुई थी और बड़े-बड़े विद्वानों तथा दार्शनिकों के आश्रयदाता थे, इन इटालियन नगर राज्यों को राजनैतिक, बौद्धिक और कलात्मक जीवन प्राचीन यूनान के नगरों की तरह था।

इसे भी पढ़ें 👉 पुरातात्विक व अभिलेखीय साक्ष्य द्वारा इतिहास की कैसे और किसकी जानकारी प्राप्त होती है।

(ख) पुनर्जागरण का दूसरा कारण था कि इटली में विभिन्न जातियों का समागम इन जातियों में गाथ, लोम्बार्ड, फ्रैंक, अरब नारमन और जर्मन जातियाँ प्रमुख थीं। रोमन वैजन्टाइन, अरब सभ्यताओं एवं बौद्धिक आन्दोलनों का होना स्वाभाविक था।

(ग) इटालियन स्कूलों तथा विश्वविद्यालयों के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप ने भी इटली में पुनर्जागरण के विकास में सहायता दी। उत्तरी यूरोपीय विश्वविद्यालयों में धर्म शास्त्रों के अध्ययन पर ही विशेष जोर दिया जाता रहा, जबकि दूसरी ओर इटली में रोमन विधि तथा चिकित्सा शास्त्र जैसे धर्मनिरपेक्ष और उपयोगी विषयों की पढ़ाई ही अधिक होती थी। धर्मनिरपेक्ष ज्ञानार्जन का विशेष महत्व होने के कारण इटली में पुनर्जागरण कालीन नवीन संस्कृति की नींव पड़ी।

(घ) इटली में पुनर्जागरण को जन्म देने एवं उसे विशिष्ट दिशा प्रदान करने में प्राचीन रोमन स्मारकों का भी विशेष महत्व था। इटालियन नगर वस्तुतः प्राचीन साम्राज्य के अवशिष्ट चिह्न थे। सम्पूर्ण प्रायद्वीप प्राचीन रोमन स्मारकों के खण्डहरों से भरा पड़ा था। रोमन प्राचीनता के प्रति यह मौज ब्रेसिया के आरनल्ड नियेंजी तथा पेवांक की आत्मकथाओं में स्पष्ट परिलक्षित होता है, इटली की नवोदित आत्मा ने पूर्वकालिक महानता को सहजरूप में ग्रहण किया और इस तरह का मत प्रायः ग्रीक रोमन संस्कृति के विशेष उत्पादनों को पुनरुज्जीवित करने में सहायता मिली, इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण दाँते हैं, जिसे इटली के पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा गया है।

(ङ) यूरोपियन पुनर्जागरण के इटली में प्रारम्भ होने का एक अन्य कारण यह था कि कन्स्टेटीनोपुल के पतन के पश्चात् वहां के विद्वानों ने भागकर इटली के नगरों में आश्रय लिया। इससे उन नगरों में पुनः प्राचीन विद्या एवं ज्ञान का प्रसार शुरू हुआ और अल्पकाल में ही इन विद्वानों की विद्वता की चिनगारी यूरोप के अन्य देशों में फैल गयी। इटली में इन नवागत विद्वानों की संख्या इतनी अधिक थी कि लगता था कि यूनान का पतन नहीं हुआ था, उसका इटली में, जिसे प्राचीनकाल में मैगनाग्रेसिया कहते थे, प्रवजन हो गया था। ये विद्वान् भगोड़े अपने साथ प्राचीन यूनानी साहित्य की अनेक अनमोल, पाण्डुलिपियाँ लेते आये थे, जिनका उस समय तक यूरोप को कोई ज्ञान नहीं था। इनमें से अनेक इटालियन स्कूलों तथा विश्वविद्यालयों में शिक्षक तथा व्याख्याता नियुक्त किए गए। इस तरह रोमन प्रजातंत्रकाल में जो कुछ हुआ था, उसकी अब पुनरावृत्ति हुई। इटली पर यूनानी पाण्डित्य की दूसरी बार विजय हुई।

इसे भी पढ़ें 👉 प्राचीन भारतीय इतिहास के साक्ष्य के महत्वा का वर्णन

पुनर्जागरण का प्रभाव

(1) मानवता की भावना का उदय-

प्राचीन यूनानी साहित्य के सौन्दर्य तथा मौलिकता की ओर लोगों का आकर्षित होना ही मानववाद कहलाता है। प्राचीन यूनानी विद्वानों के साहित्य का प्रमुख विषय था मानव या मानव की आकांक्षाओं और अनुभूतियों का अध्ययन। उन्हें देवत्व या आध्यात्म के विपरीत मानव रूचि के विषयों का अध्ययन करने में विशेष आनन्द आता था। मध्यकाल में देवत्व या आध्यात्म के विषय में जानना ही शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग बन गया। बाद में पुनर्जागरण के समय इसके स्थान पर मानववाद की भावना का उदय हुआ। मानववाद का जन्मदाता Petrarch था, जिसे पुराने यूनानी साहित्य से इतनी अधिक दिलचस्पी थी कि वह उसका पुजारी बन बैठा था। उसके साथ आत्म-विश्वास तथा प्रयत्न से मध्यकालीन आध्यात्मवाद या धार्मिक रहस्यवाद की ओर से लोगों को वैराग्य उत्पन्न हो गया। अब लोगों की अभिरूचि मानव के दुःख-सुख, सौन्दर्य, प्रेम और व्यावहारिक ज्ञान के अध्ययन की ओर जागी।

(2) चर्च के नियंत्रण से संस्कृति को मुक्ति-

आलोचनात्मक प्रवृत्ति तथा व्यापक दृष्टिकोण होने के कारण विद्या तथा संस्कृति को चर्च के नियंत्रण से छुटकारा मिला। मध्य युग में कला, साहित्य तथा विज्ञान सभी पर ईसाई चर्च की गहराई से छाप पड़ी। लेकिन पुनर्जागरण के कारण चर्च का यह सांस्कृतिक एकाधिकार जाता रहा। इससे कला, साहित्य एवं विज्ञान का स्वतंत्र रूप से विकास शुरू हुआ।

इसे भी पढ़ें 👉 हड़प्पा सभ्यता (हड़प्पा कालीन) की मुख्य विशेषताओं की विवेचना।

(3) साहित्य की उन्नति-

पुनर्जागरण के कारण साहित्य की महत्वपूर्ण उन्नति हुई। मध्यकाल में सिर्फ लैटिन भाषा का अध्ययन होता था। साधारण जनता लैटिन नहीं जानती थी। आधुनिक युग में जब लोगों की अभिरूचि विद्याध्ययन की ओर जगी, तब लोग ज्ञान प्राप्त के निमित्त किसी सरल मार्ग के लिए व्यग्र हो उठे, परिणामस्वरूप समूचे यूरोप में राष्ट्रीय लोकभाषा के साहित्य का उदय हुआ। इसी से इटालियन, फ्रांसीसी अंग्रेजी, स्पेनिश और जर्मन भाषाओं का विकास हुआ।

इटली ने पथ प्रदर्शक का काम किया। सबसे पहले दान्ते, पेट्रार्क और बोकैशियो (1313 to 75 A.D.) ने इटालियन भाषा में अपने साहित्य की रचना की। इसके अतिरिक्त मैकियावेली (Machiavelli-1469-1519), टैसियो (Tasio) तथा एरिस्टो (Arisoto) आदि बड़े-बड़े लेखक हुए। मैकियावेली ने अपनी पुस्तक ‘प्रिन्स’ इटावली में ही लिखी। इस पुस्तक में उसने तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति को सामने रखकर राजा की शक्ति को सर्वमान्य और सर्वोपरि माना है।

जर्मनी में मार्टिन लूथर ने अपने विचारों को लोकप्रिय बनाने के लिए लैटिन को छोड़कर जर्मन भाषा को अपनाया और जर्मन भाषा में बाइबिल का जो अनुवाद किया वह आधुनिक जर्मन साहित्य का सर्वप्रथम तथा महान् स्मारक है। साहित्य की सबसे अधिक उन्नति फ्रांस और इंग्लैण्ड में हुई फ्रेंच लोकभाषा का विकास रैबेल (Rabelais 1490-1553 A.D.) की व्यंग्यात्मक रचनाओं के कारण हुआ, उनकी प्रसिद्ध पुस्तक गर्गनदुआ (Gargantua) पुनर्जागरण की संक्षिप्त कहानी मानी जाती है।

इंग्लैण्ड में चौसर (Chaucer) ने अंग्रेजी भाषा का उचित रूप निर्धारित करने के लिए बड़ा प्रयत्न किया। पुनर्जागरण काल में सर टॉमस सूर भी हुए। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘यूरोपिया’ 1576 ई. में प्रकाशित हुई। इसी युग में इंग्लैण्ड में शेक्सपियर, वेन, जॉन्सन, मिल्टन, क्रिस्टोफर, माली (Marlewe) स्पेन्सर और फ्रांसिस, वेकन आदि लेखक भी हुए। पुनर्जागरण काल में इंग्लैण्ड में पद्म तथा गद्य साहित्य के साथ-साथ नाटक साहित्य का खूब विकास हुआ। प्रसिद्ध नाटककार शेक्सपियर इसी युग की देन है।

(4) कला का विकास-

प्राचीन यूनान साहित्य में पुनः रूचि उत्पन्न होने के कारण यूनानी संस्कृति के सभी क्षेत्रों में लोगों की श्रद्धा बढ़ी। परिणामस्वरूप विभिन्न कलाओं की अभूत पूर्व उन्नति हुई। भवन निर्माण कला, मूर्तिकला, संगीतकला, चित्रकला तथा नक्काशी आदि का अत्यधिक विकास हुआ।

इसे भी पढ़ें 👉 हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना का वर्णन कीजिए।सिन्धु घाटी सभ्यता में नगर नियोजन पर प्रकाश डालिये।

(5) विज्ञान की प्रगति-

पुनर्जागरण काल में विज्ञान की भी काफी उन्नति हुई। “चर्च’ मध्य युग में विज्ञान की प्रगति के मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा था। ‘चर्च’ स्वतंत्र विचार का विरोधी था, लेकिन 16वीं शताब्दी में प्राकृतिक विज्ञान तथा प्रयोगात्मक विज्ञान के आधुनिक विचारों का आरम्भ हुआ।

प्रारम्भिक मनोवैज्ञानिकों में लियोनार्डो दा विची का नाम उल्लेखनीय है। उनकी रचना का प्रमुख विषय था, मशीनों की उपयोगिता का वर्णन दूसरा प्रसिद्ध फ्रेंच विद्वान् डेकार्ट हुआ। उसने प्रत्येक विषय पर संदेह प्रकट करने की आवश्यकता जोर दिया। पोलैण्ड निवासी कोपरनिक्स (Copernicus 1473 to 1543 ·A.D.) तथा इटली के ब्रूनो (Burno) ने यूनानी वैज्ञानिक टौलमी के पुराने सिद्धान्त का जिसके अनुसार पृथ्वी सूर्यमण्डल का केन्द्र मानी जाती थी, खण्डन किया तथा यह सिद्ध किया कि पृथ्वी केन्द्र न होकर सूर्य के चारों ओर घूमने वाला नक्षत्र है। केपलर (Kepler 1571 to 1630 A.D.) ने कोपरनिक्स के सिद्धान्तों को गणित के प्रमाणों से पुष्ट किया तथा आधुनिक गणित के सिद्धान्त की स्थापना की। गैलिलियो (Galileo 1564 to 1642 A.D.) ने कोपरनिकस के सिद्धान्तों को लोकप्रिय बनाया। उसे सिद्ध करने के लिए दूरबीन का आविष्कार किया।

17वीं शताब्दी में ब्रिटिश गणितज्ञ न्यूटन ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का शक्ति सिद्धान्त प्रतिपादित किया। चिकित्साशास्त्र में भी उन्नति हुई। शल्य चिकित्सा का काफी विकास हुआ। विलियम हारवे ने ‘रक्त प्रवाह सिद्धान्त’ की स्थापना की। केपलर ने शूलकीणी मूलभागों की प्रवाहमान अनुगति के सिद्धान्तों (Continuity of Conic Sections) की स्थापना की। स्टेविन के नाप तौल में दशमलव पद्धति (Decimal System) का प्रचलन किया।

    Leave a Comment

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Scroll to Top