भारत पर सर्वप्रथम जो विदेशी आक्रमण हुए वह पारसी अर्थात ईरान की ओर से किया गया था। ईरानी शासक डेरियस या दारा प्रथम ने 519-513 ई. पू. के बीच सिन्धु प्रदेश पर विजय प्राप्त की। हमदान एवं नक्श-ए-रूस्तम अभिलेखों से डेरियस द्वारा सिन्धु प्रदेश पर विजय की पुष्टि होती है। हेरोडोटस भी इस विजय की पुष्टि करता है। हेरोडोटस कहता है कि भारत ईरानी साम्राज्य का बड़ी घनी आबादी वाला प्रदेश था तथा इससे साम्राज्य को प्रतिवर्ष 360 टेलेंट सोना मिलता था। बहिस्तान अभिलेख से डेरियस द्वारा गान्धार प्रदेश पर भी विजय की पुष्टि होती है। इस प्रकार डेरियस ने कम्बोज, पश्चिमी गान्धार और सिन्ध प्रदेश पर विजय प्राप्त की। ये राज्य ईरानी साम्राज्य के क्षेत्रपों के आधिपत्य में थे।

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भारत पर ईरानी (परासिक) आक्रमण के प्रभाव
(i) राजनैतिक प्रभाव-
ईरानी आक्रमण का भारतीय इतिहास पर कोई स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा। ईरानी सीमान्त प्रदेश से आगे नहीं बढ़ सके। सीमान्त क्षेत्र में भी उनकी विजय का स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा। शीघ्र ही उनकी सत्ता नष्ट हो गई, परन्तु परोक्ष रूप से ईरानी आक्रमण ने भारतीय इतिहास को प्रभावित किया ईरानी आक्रमण ने सीमान्त प्रदेश की राजनैतिक स्थिति का खोखलापन विदेशियों पर जाहिर कर दिया। वे इस बात को अच्छी तरह समझ गए कि इस क्षेत्र में कोई भी ऐसी संगठित शक्ति नहीं है, जो विदेशियों को रोक सके। फलतः भारत-विजय की अभिलाषा उनमें बलवती हो गई। ईरानी आक्रमण से प्रेरणा लेकर ही यूनानी विजेता सिकन्दर महान ने भारत-विजय की योजना बनाई। उसने अपने आक्रमण के लिए ईरानियों द्वारा अपनाया गया मार्ग ही अपनाया। इस प्रकार, ईरानी आक्रमण ने परोक्ष रूप में सिकन्दर की भारत-विजय का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
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(ii) प्रशासनिक प्रभाव-
ईरानी आक्रमण के फलस्वरूप कुछ ईरानी प्रशासनिक तत्त्व भारतीय प्रशासन में भी प्रविष्ट हो गए। भारतीय शासकों ने हखामनी-सम्राटों की अनेक प्रथाओं को अपना लिया। मौर्यकाल में ईरानी प्रभाव परिलक्षित होता है। मेगस्थनीज के विवरण (इण्डिका) से इन प्रथाओं की पुष्टि होती है। चन्द्रगुप्त मौर्य ने ईरानी राजाओं की ही तरह बाल धोने का उत्सव मनाना आरम्भ किया, स्त्री-अंगरक्षकों को नियुक्त किया एवं सुरक्षा के उद्देश्य से एकांत स्थान में रहना आरम्भ किया। इसी प्रकार, ईरानी व्यवस्था के अनुरूप ही साम्राज्य को विभिन्न प्रान्तों (क्षत्रपी) में विभक्त कर उनका शासन क्षेत्रपों या प्रान्तीय गवर्नरों को सौंप दिया गया। यह प्रथा बाद में शक कुषाण शासकों के समय में और अधिक विकसित हुई. ईरानी अधिकारियों को भारत में प्रशासनिक पद भी सौपे गए। ईरानी तुषस्य चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में काठियावाड़ का प्रान्तपति नियुक्त किया गया। अशोक की राजाज्ञाओं की प्रस्तावना और उनमें प्रयुक्त शब्दों (‘दिपी’, ‘निपिष्ट’ इत्यादि) के व्यवहार में ईरानी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
(iii) सांस्कृतिक प्रभाव-
भारतीय संस्कृति भी ईरानी सम्बन्धों से लाभान्वित हुई। इसका सबसे स्पष्ट प्रभाव लिपि पर पड़ा। अनेक इतिहासकारों का विचार है कि ईरानी प्रभुत्व के दौरान भारत के उन क्षेत्रों में अरामाइक-लिपि का प्रचार हुआ, जो हखामनी साम्राज्य के अन्तर्गत थे। इसी लिपि के आधार पर खरोष्ठी-लिपि का विकास हुआ, जो अरबी की तरह दाएँ से बाएँ की तरफ लिखी जाती थी। यह लिपि भारत में तीसरी शतब्दी ई. पू. से ईसा की तीसरी शतब्दी तक प्रचलित रही भारतीयों ने ईरानियों से ही पवित्र अग्नि जलाने की प्रथा भी अपनायी।
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(iv ) आर्थिक प्रभाव-
भारत व ईरान के सम्बन्धों से व्यापारिक गतिविधियों में प्रगाढ़ता आयी। भारतीय व्यापारी भारत में निर्मित वस्तुओं को लेकर पारसीक साम्राज्य के विभिन्न भागों में जाने लगे। यही नहीं ईरानी व्यापारी भी भारत आए। कुछ विद्वानों का मानना है कि ईरानियों ने ही भारत में चांदी के सिक्के प्रचलित करवाए।
(v) भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहन-
ईरानी आक्रमण के परिणामस्वरूप भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहन मिला। डेरियस प्रथम जिस समय भारत विजय की योजना बना रहा था उसी समय उसने स्काईलेक्स नामक नाविक को सिन्धु नदी के जलमार्ग का पता लगाने को भेजा था। स्काईलेक्स की भौगोलिक खोज ने ईरान और भारत के बीच सम्पर्क सुगम बना दिया।
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(vi) भारतीय कला पर प्रभाव-
ईरानी सम्पर्क ने भारतीय कला को भी प्रभावित किया। मौर्यकालीन कला पर ईरानी कला का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। अनेक विद्वानों का विचार है कि अशोक ने शिलालेख खुदवाने की प्रेरणा ईरान से ही प्राप्त की। पत्थर चिकना करने की कला भी भारतीयों ने ईरान से ही सीखी। मौर्ययुगीन मूर्तिकला पर भी ईरानी प्रभाव देखा जा सकता है। अशोक स्तम्भों के शीर्ष पर पायी जाने वाली घण्टानुमा आकृतियाँ भी ईरान से ही अनुकृत की गई। यह भी कहा जाता है कि पाटलिपुत्र में स्थित चन्द्रगुप्त मौर्य का राजप्रासाद पर्सीपोलिस के राजमहल के ढाँचे पर ही तैयार किया गया था। इस प्रकार ईरानी आक्रमण ने भारतीय इतिहास और संस्कृति को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित किया।
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