अपराध करने के कौन-कौन से चरण हैं? तैयारी या प्रयत्न कब दण्डित होता है?

अपराध करने के कौन-कौन से चरण हैं? तैयारी या प्रयत्न कब दण्डित होता है? समझाइये।

अपराध करने के चरण– अपराध के निम्न चरण माने गये हैं-

  1. आशय (Intention),
  2. तैयारी (Preparation),
  3. प्रयत्न (Attempt),
  4. अपराध का किया जाना (Commission),

1.अपराध करने का आशय (Intention ) –

पहली अवस्था में अभियुक्त के दिमाग में दोषपूर्ण आशय की उत्पत्ति होती है, अर्थात् जब कोई व्यक्ति कोई भी अपराध करता है तो सबसे पहले उसके दिमाग में उस कार्य को करने की भावना उत्पन्न होती है।

2. अपराध करने की तैयारी (Preparation)

दूसरी अवस्था अपराध की तैयारी मानी जाती है। तैयारी से तात्पर्य अपराध करने के लिए काम में आने वाली सभी वस्तुओं व साधनों का प्रबन्ध करने से है। आशय के समान तैयारी को भी सामान्यतया दण्डनीय नहीं माना गया है। परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में इसे भी दण्डनीय माना जा सकता है। जैसे किसी की मृत्यु कारित करने के लिए विष खरीदना, बन्दूक खरीदना आदि

भारतीय दण्ड संहिता में निम्नलिखित मामलों में अपराध की तैयारी मात्र को दण्डनीय बनाया गया है-

  1. भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने की तैयारी करना [धारा 122];
  2. भारत सरकार के साथ शान्ति का सम्बन्ध रखने वाली किसी भी शक्ति के राज्यक्षेत्र में लूटपाट करने की तैयारी करना [ धारा 126 ];
  3. डकैती करने की तैयारी करना [धारा 399]।

3. अपराध करने का प्रयत्न (Attempt )

प्रयत्न का तात्पर्य अपराध पूर्ण कार्य की ओर सीधे उन्मुख होना है। इसके अन्तर्गत अपराध करने की दिशा में कोई कार्य किया जाता है। यदि करने में कोई बाधा नहीं पहुँचायी जाती तो कार्य हो जाता है।

सर स्टीफेन ने अपने क्रिमिनल ला डाइजेस्ट में प्रयत्न की परिभाषा इस प्रकार दी है- “उस अपराध को कारित करने के आशय से किया गया एक कार्य और उस कार्य को गठित करने वाले कार्य की सम्पूर्ण क्रमावली जो अपराध को वस्तुतः कारित करने में अंग बनते यदि उन्हें रोका न जाता तो उसे अपराध कारित करने का प्रयत्न कहेंगे, जिस बिन्दु पर कार्यों की ऐसी क्रमावली आरम्भ होती है, परिभाषित नहीं की जा सकती, परन्तु विशिष्ट बाद की परिस्थितियों पर निर्भर करती है। मलकियत सिंह बनाम पंजाब राज्य (ए० आई० आर० 1970 एस० सी० 713)

प्रयत्न के सिद्धान्त

तैयारी और प्रयत्न के अन्तर को स्थापित करने के लिए निम्न सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं।

(a) सन्निकटता का सिद्धान्त (Proximity Rule)

कोई कार्य प्रयत्न के अपराध की संरचना करता है यदि अपराधी सभी कार्य पूरा कर चुका हो किन्तु परिणाम नहीं प्राप्त किया हो तो वह इस सिद्धान्त के अन्तर्गत आयेगा ।

आर०बनाम टेलर, (1895) 1 एफ० आर० एफ० 511- इस मामले में ‘क’ घास के ढेर के पीछे माचिस जलाते हुए पकड़ा गया उसे आगजनी के प्रयत्न के लिए दोषी पाया गया।

(b) असम्भवता का सिद्धान्त

कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जो असम्भव हो तो यह अपराध नहीं होगा। असम्भव प्रयत्नों को दण्डित नहीं किया जाता है असम्भवता यदि पूर्णnहो तो दण्डित नहीं किया जायेगा लेकिन यदि सापेक्ष हो तो दण्डित किया जायेगा।

‘क’ ‘य’ की जेब में हाथ डालकर ‘य’ की जेब में से कुछ चुराने का प्रयत्न करता है। ‘य’ की जेब में कुछ न होने के कारण ‘क’ अपने प्रयत्न में असफल रहता है। ‘क’ इस धारा के अधीन दोषी होगा।

‘अ’ ‘ब’ को मार डालने के आशय से आर्सेनिक समझकर चीनी खिलाता है। इस कार्य से प्रत्याशित परिणाम नहीं प्राप्त हुआ इस लिए यह प्रयत्न की कोटि में नहीं आयेगा। (c) वस्तु का सिद्धान्त यह सिद्धान्त उन मामलों में अन्तर का प्रयत्न है जिसमें वस्तु के विषय में भ्रम होता है तथा जिसमें वस्तु का अभाव रहता है।

दृष्टान्त- ‘अ’ ‘ब’ को मार डालने के आशय से एक खाली गाड़ी पर ‘ब’ को उसमें बैठा हुआ समझ कर गोली चलाता है।

‘अ’ का कार्य प्रयत्न की कोटि में आयेगा।

‘अ’ गर्भपात कराने के आशय से ‘अ’ को कोई दवा खिलाता है किन्तु वह गर्भवती नहीं है। ‘अ’ का कार्य प्रयत्न की कोटि में आयेगा।

(d) कार्य की ओर अग्रसर होने का सिद्धान्त

कार्य की ओर अग्रसर होने में यदि प्रयत्न किया जाता है तो अपराध होगा। ‘अ’ ‘ब’ की पीठ की तरफ गोली चलाता है। प्रयत्न इस कारण विफल हो जाता है क्योंकि ‘ब’ ‘अ’ की मारक क्षमता से अधिक दूरी पर था। ‘अ’ प्रयत्न का दोषी है।

अभयानन्द मिश्र बनाम स्टेट ऑफ बिहार (ए० आई० आर० 1951 एस० सी० 1698) के मामले में कहा गया है कि कोई व्यक्ति तब प्रयत्न का अपराध करता है जब उसका आशय कोई अपराध करने का हो और उस आशय के साथ वह अपराध की ओर उन्मुख होकर कोई कदम उठाये। परन्तु अभियुक्त की तरफ से सभी आवश्यक कार्य किये जाने के बाद उसके नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों के कारण वह आशयित परिणाम तक न पहुँच पाया हो। इसी प्रकार का विचार महाराष्ट्र राज्य बनाम मोहम्मद याकूब (ए० आई० आर० 1980 एस० सी० 112) के बाद में व्यक्त किया गया। प्रस्तुत मामले में तीन व्यक्तियों (ट्रक एवं जीप के ड्राइवर तथा ट्रक का क्लीनर) को भारत से बाहर चांदी की तस्करी के प्रयास करने हेतु अभियोजित किया गया। उन्हें एक निश्चित सूचना मिलने पर पकड़ा गया था और ऐसे समुद्री तट पर जहाँ समुद्री यान पहुँच सकते थे, के निकट पाया गया था। तलाशी लेने पर चाँदी की सिल्लियाँ ट्रक में छिपाई हुई पाई गयीं। एक यंत्र चालित यान के इन्जन की आवाज भी निकट के क्रीक से सुनाई पड़ी थी। अपराधियों को समुद्र द्वारा भारत के बाहर चाँदी के निर्यात के प्रयास हेतु दोषी पाया गया।

4. अपराध का किया जाना (Commission)

अपराध पूर्ण हो जाने पर दण्डनीय हो जाता है।

धारा 511 के आवश्यक तत्व (Essential ingredients of Section 511)

धारा 511 में प्रयत्न के सम्बन्ध में सामान्य उपबन्ध किये गये हैं। धारा 511 के अनुसार, “जो कोई इस संहिता द्वारा आजीवन कारावास से या कारावास से दण्डनीय अपराध करने का, या ऐसा अपराध कारित किए जाने का प्रयत्न करेगा, और ऐसे प्रयत्न में अपराध करने की दिशा में कोई कार्य करेगा, जहाँ कि ऐसे प्रयत्न के दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबन्ध इस संहिता द्वारा नहीं किया गया है, वहाँ वह उस अपराध के लिए उपबन्धित किसी भांति के कारावास से उस अवधि के लिए, जो यथास्थिति, आजीवन कारावास से आधे तक की या उस अपराध के लिए उपबन्धित दीर्घतम अवधि के आधे तक की हो सकेगी या ऐसे जुमनि से, जो उस अपराध के लिए उपबन्धित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।” इस धारा के लागू होने के लिए निम्न बातों का होना आवश्यक है-

1.आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय अपराध अभियुक्त द्वारा कोई ऐसा

अपराध किये जाने का प्रयत्न किया गया हो, जो आजीवन कारावास या कारावास के दण्ड से दण्डनीय हो। दूसरे शब्दों में, यह धारा उन मामलों में लागू नहीं होती जिनके लिए मृत्युदण्ड दिया जाना आवश्यक है अथवा जिसके लिए केवल जुर्माने के दण्ड का उपबन्ध हो।

आपराधिक अतिचार किसे कहते हैं? इस अपराध के आवश्यक तत्वों का वर्णन कीजिये।(What do you mean by Criminal Trespass? Explain its essential ingredients.)

2. दण्ड संहिता द्वारा दण्डनीय हो

इस संहिता द्वारा दण्डनीय पदावली से स्पष्ट होता है कि यह धारा केवल उन अपराधों के प्रयत्न को ही दण्डनीय बनाती है जो भारतीय दण्ड संहिता द्वारा दण्डनीय है। यदि कोई इस संहिता द्वारा दण्डनीय नहीं है तो उसका प्रयत्न भी दण्डित नहीं किया जा सकता।

3. अपराध के करने या किये जाने के प्रयत्न में अपराध की दशा में कोई कार्य

अभियुक्त द्वारा किया जाने वाला कार्य इस प्रकार का होना चाहिए कि यदि बाहर की परिस्थितियों जो अभियुक्त के नियंत्रण में नहीं हैं, बाधा उत्पन्न नहीं करतीं तो वह अवश्य सफल हो जाता।

4. अपराध के दुष्प्रेरण का प्रयत्न

इस धारा के अन्तर्गत किसी अपराध के दुष्प्रेरण का प्रयत्न भी सम्मिलित है।

5. दण्ड का अभिव्यक्त उपबन्ध न हो

यह धारा केवल उन मामलों पर लागू होती है। जिनके प्रयत्न के सम्बन्ध में दण्ड का प्रावधान नहीं किया गया है। यदि किसी प्रयत्न को दण्ड संहिता में अन्यथा दण्डनीय बनाया गया है तो फिर वह मामला धारा 511 के अन्तर्गत नहीं आ सकता।

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