भारतीय संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है? प्रस्तावना में उल्लिखित आदशों तथा लक्ष्यों को किस प्रकार संविधान में साकार किया गया है?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble of the Indian Constitution)

भारतीय संविधान की प्रस्तावना – “हम भारत के लोग, भारत को एक “सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न लोकतन्त्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य” बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई० (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी सम्वत् दो हजार छ विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। “

प्रस्तावना के आरम्भ में ही शब्द “हम भारत के लोग” (We the people of India) प्रयुक्त किये गये हैं। यह इस बात का संकेत देता है कि “लोग सर्वोपरि है, न कि जन प्रतिनिधि” [उषा भारती बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश, ए० आई० आर० 2014 एस० सी० 1686] 1

प्रस्तावना के उद्देश्य (Objects of the Preamble)

उपर्युक्त उद्देशिका (प्रस्तावना) अपने निम्नलिखित उद्देश्यों को प्रकट करती है

  1. भारत को ‘सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न लोकतन्त्रात्मक समाजवादी गणराज्य’ बनाना है;
  2. भारत के समस्त नागरिकों को निम्नलिखित प्राप्त करना है
  • सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
  • विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता,
  • प्रतिष्ठा और अवसर की समता, और
  1. भारत के समस्त नागरिकों में निम्नलिखित बातों के लिए बढ़ावा देना है • व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता को सुनिश्चित करने वाली भाई चारे की भावना।

भारत एक सम्पूर्णप्रभुत्वसम्पन्न लोकतन्त्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी लोकतंत्रात्मक गणराज्य है

निम्नलिखित बातों के आधार पर हम कह सकते हैं, कि भारत एक सम्पूर्णप्रभुत्वसम्पन्न लोकतन्त्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य है

(1) सम्पूर्णप्रभुत्वसम्पन्न (Sovereign)

भारत अब 15 अगस्त, सन् 1947 से बाहरी नियन्त्रण (अर्थात् विदेशी सत्ता) से बिल्कुल मुक्त है और अपनी आन्तरिक- विदेशी नीतियों को स्वयं निर्धारित करने के लिए पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है और इस प्रकार से वह आंतरिक तथा बाहरी, सभी मामलों में, अपनी इच्छानुसार आचरण और व्यवहार करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र है।

(2) लोकतन्त्रात्मक (Democratic)

अर्थात् देश की प्रभुसत्ता अब भारत की जनता में निहित है और देश में जनता के लिए जनता की सरकार कायम है। इस बात के सबूत में हम देखते हैं कि हर पाँचवें साल भारत में आम चुनाव होते हैं, जिनमें जनता वयस्क मताधिकार के आधार पर अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव करती है, जो राज्यों में और केन्द्र में जाकर सरकार का संचालन करते हैं।

(3) पंथनिरपेक्ष (Secular)

पंथनिरपेक्ष राज्य का अर्थ यह होता है, कि राज्य का अपना कोई विशेष धर्म नहीं है। भारत में मौजूद सभी धर्मों को पूर्ण स्वतन्त्रता और समान आदर प्राप्त है और भारतीय संविधान ने इस बात को सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त व्यवस्था भी की है।

(4) समाजवादी (Socialist)

समाजवाद की कोई सुनिश्चित परिभाषा नहीं है, किन्तु सर्वमान्य रूप से आर्थिक न्याय में समाजवाद की कल्पना की जाती है और समाजवादी सरकार देश के लोगों को सामाजिक-आर्थिक क्रान्ति के द्वारा खुशहाल बनाने का प्रयत्न करती है, जिसे पूरा करने के लिए वह उत्पादन के मुख्य साधनों पर नियन्त्रण स्थापित करती है। भारत ने लोकतान्त्रिक समाजवाद (Democratic Socialism) को स्वीकार किया है। इसलिए सरकार ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को लागू किया है और आवश्यकतानुसार कई उद्योगों का राष्ट्रीयकरण भी किया है। मिश्रित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर के उद्यम साथ रहते हैं।

(5) गणराज्य (Republic)

गणराज्य से अभिप्रेत है राज्य के सर्वोच्च अधिकारी का पद वंशानुगत (Hereditary) नहीं है, बल्कि एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचन पर आधारित है। इस दृष्टि से भारत और अमेरिका गणराज्य हैं, क्योंकि इन देशों में राज्य के सर्वोच्च अधिकारी का पद वंशानुगत नहीं है। इन देशों में राष्ट्रपति जो कि सर्वोच्च अधिकारी होता है, उसका निश्चित अविध के लिए निर्वाचन किया जाता है। इसके विपरीत इंग्लैण्ड गणराज्य नहीं है, क्योंकि वहाँ राजा या रानी का पद वंशानुगत होता है।

प्रस्तावना का महत्व (Significance of the preamble)

संविधान की प्रस्तावना का महत्व उस समय उजागर होता है, जब संविधान के किसी प्रावधान की भाषा और उसका अर्थ स्पष्ट या संदिग्ध हो। ऐसी स्थिति में उसे समझने के लिए प्रस्तावना की सहायता ली जाती है।

“बेरुबारी के मामले” इन री इण्डो एग्रीमेंट (AIR 1960 SC 845) में उच्चतम न्यायालय ने यह मत प्रकट किया था कि उद्देशिका संविधान का अंग नहीं है, भले ही उसे संविधान का प्रेरणा- तत्व कहा जाय। इसके न रहने से संविधान के मूल उद्देश्यों में कोई अन्तर नहीं पड़ता है। यह न तो सरकार को शक्ति प्रदान करता है और न ही सरकार की शक्ति को किसी प्रकार से प्रतिबन्धित नियन्त्रित या संकुचित ही करता है। किन्तु केशवानन्द भारती बनाम राज्य (AIR 1973 SC 1461) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि उद्देशिका संविधान का भाग है। इस मामले में यह भी कहा गया है कि उद्देशिका संविधान की आधारिक संरचना है।

क्या उद्देशिका (प्रस्तावना) में संशोधन किया जा सकता है? (Can Preamble be amended) यह प्रश्न पहले ‘केशवानन्द भारती’ (ऊपर चर्चित) के मामले में उच्चतम न्यायालय के सामने विचार के लिए आया था। सरकार का तर्क यह था कि उद्देशिका भी संविधान का एक भाग है, इसलिए संविधान के अनु० 368 के अन्तर्गत उसमें भी संशोधन किया जा सकता है। अपीलार्थी का यह कहना था कि प्रस्तावना स्वयं संविधान की शक्ति पर विवक्षित प्रतिबन्ध है उसमें संविधान का मूलभूत ढाँचा निहित है, जिसको संशोधित करके 1 नष्ट नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उसमें से कुछ भी निकाल दिए जाने पर संवैधानिक ढाँचे का गिर जाना निश्चित है।

न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि उद्देशिका संविधान का एक भाग है और उसके उस भाग में जो मूल ढाँचे से सम्बन्धित है, को छोड़कर शेष में अनु० 368 के अन्तर्गत संशोधन किया जा सकता है।

भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं को समझाइए। State the main characteristics of the Indian Constitution.

42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में “समाजवादी पंथनिरपेक्ष शब्दावली जोड़ी गयी है। इस प्रकार संसद् ने उद्देशिका में संशोधन करने की शक्ति का प्रयोग किया है। इस संशोधन द्वारा केशवानन्द भारती के मामले में दिए गए उच्चतम न्यायालय के निर्णय के प्रभाव को दूर करने का प्रयास किया गया है, जिसमें यह निर्णय दिया गया था कि उद्देशिका के उस भाग में, जो मूल ढाँचे से सम्बन्धित है, संशोधन नहीं किया जा सकता है, किन्तु जब तक केशवानन्द भारती का निर्णय उलट नहीं दिया जाता है उद्देशिका में किए गए संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह उद्देशिका में निहित किसी आधारभूत ढाँचे को नष्ट करता है।

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