भगवतीचरण वर्मा के साहित्यिक अवदान – भगवतीचरण वर्मा के कुछ उपन्यास विशेष रूप से चर्चित हैं। इनका वृहत्काय उपन्यास ‘भूले बिसरे चित्र’ मानवीय संवेदनाओं को मार्मिक अभिव्यक्ति देने वाला उपन्यास है। इसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का विपद् चित्रण है। स्वतंत्रता पश्चात् के चार पीढ़ियों की कहानी है। ‘चित्रलेखा’ उपन्यास अनातोल फ्रांस को ‘ताइरन’ रचना से प्रभावित है, प्रोफेसर की सुन्दर युवा पत्नी के विवाहेतर सम्बन्धों पर आधारित है। ‘टेढे-मेढे रास्ते’ राजनीतिक पृष्टभूमि में लिखा गया सामाजिक पारिवारिक व्यवस्थाओं के विघटन की कहानी प्रस्तुत करता है। ‘आखिरी दाँव’ उपन्यास आर्थिक मूल्यों के इस युग में विकृत होती हुई मनुष्यता का चित्रण करता है। ‘सीधी सच्ची बातें’ सामान्य जीवन की सहज स्थितियों की अभिव्यक्ति करता है। ‘सबहिं नचायत राम गोसाई’ में मानव जीवन के उत्थान-पतन, आरोह-अवरोह, हर्ष-विषाद, सुख-दुःख की मिश्रित व्यंजना प्राप्त होती है। वर्मा जी के सभी उपन्यास पाठकों को गहराई तक प्रभावित करने में पूर्ण सफल हैं।
प्रमुख लेखक एवं उनके रचनाएँ-आगामी परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण जानकारी
‘टेढ़े-मेढ़ रास्ते ‘ वर्मा जी का महत्वपूर्ण उपन्यास है, जिसकी पृष्ठभूमि राजनीतिक है।। इसमें ताल्लुकेदारी प्रथा का पतन तथा संयुक्त परिवार प्रथा का विघटन दिखाया गा है। यह व्यंग्यप्रधान उपन्यास है। यह व्यंग्य केवल कथानक तक ही सीमित नहीं है बल्कि पात्रों के चरित्र विकास में भी लक्षित होता है। सबसे बड़ा व्यंग्य यह है कि नाक ताल्लुकेदार सहित अन्य समस्त पात्रों का विनास स्वयं उनके हाथों ही होता है। एक परिवार के रूढ़िवादी मुखिया की अहम्मन्यता के कारण सम्पन्न सम्मिलित परिवार अल्प समय में ही बिखर जाता है। सकन्तिकाल की राजनीतिक समस्याओं, धार्मिक उलझनों तथा सामाजिक अन्तर्विरोधों का भी चित्रण इस कृति में हुआ है नायक अपनी प्रभुता का दर्प लेकर अटल हिमालय की भाँति खड़ा रहता है। उसे परिवार के किसी व्यक्ति से मोह नहीं है। केवल अपने सिद्धान्तों और अपने शरीर से मोह है। वह केवल अपने मार्ग को उचित मानता है, शेष लोगों के बनाये हुए मार्ग ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते ‘ हैं। उसके सभी पुत्र हाड़-मांस के प्राणी न होकर सिद्धान्त शरीरी है। बौद्धिक दृष्टि से तीनों का स्तर अलग है। परन्तु अहंकार में वे अपने पिता के प्रतिरूप हैं। कोई किसी का सम्मान नहीं करता। अन्त में यह संयुक्त परिवार विघटित हो जाता है।