ब्रिटिश संविधान के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिये।

ब्रिटिश संविधान के प्रमुख स्रोतों

संविधान के प्रमुख स्रोतों- ब्रिटिश संविधान का निर्माण किसी एक निश्चित तिथि को, किसी संविधान निर्माण सभा ने नहीं किया परन्तु यह स्वाभाविक रूप से धीरे-धीरे विकसित हुआ। है अर्थात् यह इतिहास का परिणाम है। इतिहास के दौरान विकास की इस प्रक्रिया में अनेक तत्वों ने मिलकर, ब्रिटिश संविधान को वर्तमान रूप दिया है। इन्हीं तत्वों को हम संविधान का स्रोत कह सकते हैं।

1. महान चार्टर

ब्रिटिश संविधान के इतिहास में सबसे प्राचीन तत्व चार्टर है जिन्हें संविधान की सीमा चिन्ह कहा जाता है। यह वे संवैधानिक समझौते है जिन्हें जनता ने राजा के निरंकुश शासन के विरुद्ध तथा अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए राजा के विरूद्ध आन्दोलन करके प्राप्त किया है। विभिन्न चार्टर प्रजा के अधिकारों की रक्षा की गारण्टी के रूप में प्राप्त किए गए। ये संविधान के सबसे प्राचीन स्रोत है।

सन् 1215 ई. का मैग्नाकार्टा प्रथम संवैधानिक सीमा चिन्ह माना जाता है। सर्वप्रथम इसी के द्वारा राजा की शक्तियों पर बन्धन लगाने का प्रयास किया गया था। इस महान प्रलेख के कुछ उपबन्धों के अनुसार राजा के लिये यह पाबन्दी लगा दी गयी कि कुछ एक मामलों में वह महान परिषद् की अनुमति के बिना कोई कदम नहीं उठायेगा। उस समय की ‘महान परिषद’ आधुनिक संसद की छाया मात्र भी नहीं थी क्योंकि केवल बड़े-बड़े जागीरदार ही उसके सदस्य होते थे। फिर भी इस चार्टर के द्वारा राजा के विरुद्ध परिषद् को अधिक शक्तिशाली करने का प्रयत्न किया गया। मैग्नाकार्टा के अनुच्छेद 12 की व्याख्या इस प्रकार की गई कि इसके द्वारा राजा ने यह आश्वासन दिया था कि संसद की अनुमति के बिना लगाए गए कर अवैध माने जायेंगे। राजा ने यह भी आश्वासन दिया था कि उस समय तक किसी भी स्वतन्त्र व्यक्ति को न तो गिरफ्तार किया जाएगा, न देश से निष्कासित किया जायेगा जब तक देश के कानून के अनुसार ऐसा करने का निर्णय न लिया गया हो। इस प्रकार किसी को न्याय से वंचित न करने का आश्वासन दिया गया। चैथम ने मैग्नाकार्टा और अधिकार याचिका को ‘ब्रिटिश संविधान की बाइबिल’ कहा है।

अधिकार पत्र इसको संसद ने पारित किया था इसलिए यह एक संविधि ही थी, क्योंकि यह भी राजा तथा संसद के बीच एक प्रकार से संवैधानिक समझौता था, इसलिये इसे चार्टरों में ही शामिल किया जाता है। इसमें शासन से सम्बन्धित कई महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का वर्णन किया गया था। राजा जेम्स द्वितीय के कार्यकाल (1688-89) में एक क्रान्ति हुई। इसका कारण यह था कि राजा ने, ब्रिटिश परम्परा के विरुद्ध कैथोलिक धर्मावलम्बियों को महत्वपूर्ण पद प्रदान करना आरम्भ कर दिया था। जेम्स को गद्दी छोड़ने के लिए बाध्य किया गया। उसकी पुत्री मेरी तथा दामाद विलियम ऑफ ओरेन्ज को राज्य सौंपा गया। इसके तुरन्त बाद संसद ने अधिकार पत्र या अधिकार सम्बन्धी विधेयक पारित किया। उसमें उन आश्वासनों को शामिल किया गया जो कि मैग्नाकार्टा और अधिकार याचिका के द्वारा दिए गए थे। इसमें प्रावधान किया गया कि संसद की स्वीकृति के बिना कोई कर नहीं लगाया जायगा, राजा स्वेच्छा से न काई कानून निलम्बित करेगा और न किसी को दण्ड दे सकेगा, शान्ति काल में देश की कोई स्थायी सेना नहीं होगी। (इसलिए आज भी प्रतिवर्ष सेना का नवीनीकरण होता है।) संसद जनता द्वारा स्वतन्त्र रूप से निर्वाचित की जायगी। उसके समय-समय पर अधिवेशन बुलाए जायेंगे तथा संसद में विचार अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी। यह भी प्रावधान किया गया है कि कोई भी कैथोलिक धर्मावलम्बी राजा या रानी के रूप में गद्दी पर नहीं बैठेगा। इस प्रकार प्रोटेस्टेण्ट धर्म को राज्य धर्म स्वीकार किया गया।

2. संविधियाँ

ब्रिटिश संविधान का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत संविधियाँ है। संविधयों कानून होते हैं जिन्हें संसद ने पारित किया है। ब्रिटिश संसद को कानून निर्माण की अन्तिम शक्ति प्राप्त है। इसलिए समय-समय पर इतने मताधिकार चुनाव प्रणाली, सार्वजनिक अधिकारियों के कर्तव्य, व्यक्ति के अधिकार आदि से सम्बन्धित अनेक संविधियाँ पारित की है जो ब्रिटेन के अतिरिक्त संविधान का निर्मित या लिखित भाग कही जाती है।

3. अभिसमय

ब्रिटिश संविधान का अधिकांश भाग अभिसमय या परम्पराओं पर आधारित है। यह आदतों या प्रथाओं से मिलकर बनते हैं तथा राजनीतिक नैतिकता के नियम मात्र होने पर भी बड़ी-से-बड़ी सार्वजनिक सत्ताओं के दिन-प्रतिदिन के सम्बन्धों और गतिविधियों के अधिकांश भाग का नियमन करते हैं।

4. सामान्य या प्रचलित कानून

सामान्य कानून, रीतियों तथा प्रथाओं पर आधारित है अर्थात् इसे संसद द्वारा नहीं बनाया गया है परन्तु अभिसमयों से भिन्न इन्हें न्यायालयों द्वारा मान्यता प्राप्त है तथा लिखित कानूनों की तरह इन्हें लागू किया जाता है। इनका प्रयोग हैनरी द्वितीय के समय में प्रारम्भ हुआ था। उसके समय में न्यायाधीशों को विभिन्न प्रदेशों में ज्यूरी की सहायता से मुकदमों का फैसला करने के लिए भेजा जाता था। जजों ने उन प्रदेशों की प्रचलित प्रथाओं को न्यायिक मान्यता प्रदान की तथा उनके आधार पर कोई निर्णय दिये। तभी से यह प्रचलित कानून बन गये। लोगों के अनेक अधिकार सामान्य कानून पर आधारित है, जैसे भाषण की स्वतन्त्रता, ज्यूरी द्वारा फौजदारी मुकदमों की सुनवाई, प्रेस की स्वतन्त्रता आदि।

5.न्यायिक निर्णय तथा बड़े-बड़े न्यायवेत्ताओं की टीकायें

संविधान निर्माण या उसके विकास में न्यायपालिका ने सदा से उल्लेखनीय योग दिया है। न्यायाधीश अपने निर्णयों द्वारा कानूनों की व्याख्या करते हैं तथा उन्हें स्पष्ट करते हैं। उनकी व्याख्या रिकॉर्ड कर ली जाती है तथा भविष्य में पैदा होने वाले उसी प्रकार के झगड़ों के लिए एक कानून का काम करती है। 1670 के वुशेल्स केस में यह निर्णय लिया गया था कि किसी भी गवाह के विरुद्ध न्यायिक जिरह में कहे गये शब्दों के कारण उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, इसी प्रकार विल्वस बनाम वुड मुकदमें में यह निर्धारित किया गया था कि अज्ञात लेखकों को तलाशी के लिए या उसके लेखों पर कब्जा करने के लिए यदि उसके विरुद्ध वारण्ट जारी किया जायेगा तो वह अवैध | माना जायेगा। अन्त में, विख्यात न्यायवेत्ताओं की टीका को भी संविधान का स्रोत ही माना जाता है, क्योंकि इनमें भी बड़ी स्पष्टता तथा सावधानी के साथ संविधान की व्याख्या की जाती है। जिनका न्यायालय भी प्रयोग करते हैं।

रजिया की राज्य नीति का विवेचन कीजिए।

इस प्रकार हम देखते हैं कि ब्रिटिश संविधान का कोई एक स्रोत नहीं है। यह संविधियों, चार्टरों, प्रथाओं न्यायिक निर्णयों आदि का संग्रह है जो संयोग तथा विवेक के परिणाम हैं।

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