Sociology

प्राचीन काल में वर्ण व्यवस्था के आधार एवं महत्व की विवेचना कीजिए।

प्राचीन काल में वर्ण व्यवस्था के आधार एवं महत्व की विवेचना कीजिए।

प्राचीन काल में वर्ण व्यवस्था के आधार एवं महत्व वर्ण शब्द ‘वृञ् करणे’ धातु से उत्पन्न हुआ है। इसका अर्थ है वरण करना या चुनना या व्यवसाय का चयन करना। इससे यह आभास मिलता है कि वर्ण से तात्पर्य किसी विशेष व्यवसाय को चुनना या अपनाने से हैं। वर्ण उस वर्ग का सूचक शब्द प्रतीत …

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वर्ण व्यवस्था का समाजशास्त्रीय महत्व बताइए।

वर्ण व्यवस्था का समाजशास्त्रीय महत्व बताइए।

वर्ण व्यवस्था का समाजशास्त्रीय महत्व वर्ण व्यवस्था का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से बहुत बड़ा महत्व है। वर्ण व्यवस्था द्वारा – समाज में यथास्थिति बनाये रखने में बड़ी सहायता मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने वर्ण के आधार पर अपने कर्तव्यों का पालन करता है। यथा ब्राह्मण वर्ण अध्ययन एवं अध्यापन का कार्य करता था। जबकि क्षत्रिय वर्ण …

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संस्कारों के महत्व की विवेचना कीजिए।

संस्कारों के महत्व की विवेचना कीजिए।

संस्कारों के महत्व(Importance of rituals) हिन्दू जीवन में संस्कारों का बड़ा महत्व है। जन्म लेने के पूर्व से मृत्यु तक व्यक्ति विभिन्न संस्कारों के सूत्र में बँधा हुआ है। डॉ० राजबली पाण्डेय ने संस्कारों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है-“समाज विज्ञान की दृष्टि से भी संस्कारों का अध्ययन बड़ा महत्व रखता है। प्रत्येक …

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वर्णाश्रम व्यवस्था के अर्थ तथा उद्देश्य की व्याख्या कीजिए।

वर्णाश्रम व्यवस्था के अर्थ तथा उद्देश्य की व्याख्या कीजिए।

वर्णाश्रम व्यवस्था के अर्थ वर्णाश्रम व्यवस्था के अर्थ – ‘आश्रम’ शब्द मौलिक रूप में ‘श्रम’ धातु से बना हुआ है, जिसका अर्थ हैं उद्योग करना अथवा परिश्रम करना। श्री० पी०एच० प्रभु का कथन है कि आश्रम शब्द से दो अवस्थाओं की ओर संकेत मिलता है- (क) एक स्थान जहाँ परिश्रम किया जाय तथा (ख) इस …

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क्षेत्राधारित दृष्टिकोण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।

क्षेत्राधारित दृष्टिकोण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।

क्षेत्राधारित दृष्टिकोण की अवधारणा क्षेत्राधारित दृष्टिकोण यह होता है जिसके अंतर्गत एक समाजशास्त्री किसी विषय का क्षेत्रीय अध्ययन करता है तथा उस विषय से जुड़ी हुई विभिन्न समस्याओं का पता लगाता है। भारत के विशेष सन्दर्भ में यदि बात की जाय तो यहाँ का मुख्य विषय ग्रामीण अर्थव्यवस्था भू-स्वामित्व, ग्रामीण सामाजिक संरचना तथा उसका स्तरीकरण, …

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भारत में क्षेत्रीय अध्ययन का महत्व बताइए।

भारत में क्षेत्रीय अध्ययन का महत्व बताइए।

भारत में क्षेत्रीय अध्ययन का महत्व भारत में क्षेत्रीय कार्य दृष्टि के अध्ययनों का बड़ा महत्व है। इस महत्व का उल्लेख एम० एन० श्रीनिवास, डॉ० एस०सी० दुबे एवं अन्य विद्वानों ने किया है, जिसका उल्लेख इस प्रकार है 1. भारतीय ग्रामों का अध्ययन करने के पश्चात् एम० एन० श्रीनिवास ने यह बताया है कि पुस्तकीय …

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पुस्तकीय दृष्टिकोण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।

पुस्तकीय दृष्टिकोण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।

पुस्तकीय दृष्टिकोण की अवधारणा- पाठकीय अथवा पुस्तकीय दृष्टिकोण से हमारा तात्पर्य सामाजिक क्रियाओं के संयोजन तथा एकीकरण से है जिसके द्वारा किसी समाज का अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन समाज में उपलब्ध लिखित सामग्री के आधार पर किया जाता है, जिसके द्वारा समाज की संरचना, प्रकार्य, गतिशीलता आदि को स्पष्ट किया जाता है। पुस्तकीय …

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शास्त्रीय दृष्टिकोण का महत्व बताइए Explain the importance of classical approach.

शास्त्रीय दृष्टिकोण का महत्व बताइए Explain the importance of classical approach.

शास्त्रीय दृष्टिकोण का महत्व भारतीय समाज में शास्त्रीय दृष्टिकोण का बड़ा महत्व है। इस दृष्टिकोण में व्यक्ति को प्रमुखता दी गई है। स्पष्ट है कि व्यक्ति समाज एवं सामाजिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है, जिसके बिना उनका कोई अस्तित्व नहीं रह सकता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए हमारे मनीषियों ने मनुष्य की …

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पुस्तकीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोण में अन्तर्सम्बन्ध बताइए

पुस्तकीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोण में अन्तर्सम्बन्ध बताइए

पुस्तकीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोण पुस्तकीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोण – समाज को समझने के लिए पुस्तकीय एवं क्षेत्रीय दोनों ही दृष्टिकोणों की आवश्यकता पड़ती है। प्राचीन भारतीय समाज का स्वरूप कैसा था, समाज में उस समय कौन-कौन सी संस्थाएं थी आदि की जानकारी पुस्तकीय दृष्टिकोण से मिलती है जबकि समाज में निवास करने वाले वर्णों एवं …

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