भारतीय संविधान : कठोर और लचीला (एक साथ) Constitution with flexible and rigid
इस आर्टिकल में आप सभी को हम भारतीय संविधान : कठोर और लचीला (एक साथ) शेयर करने वाले हैं। जो छात्र विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तयारी कर रहे हैं उन सभी के लिए आज का हमारा यह आर्टिकल बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगा। इस आर्टिकल में हम 1-लचीला संविधान (Flexible Constitution) तथा 2-कठोर संविधान (Rigid Constitution) दोनों संविधान के बारे में पूरी जानकारी शेयर करंगे जो निम्नलिखित हैं-Indian Constitution is a rigid Constitution with flexible character ” Discuss
लचीला संविधान (Flexible Constitution)
अलिखित संविधान साधारणतया लचीला संविधान होता है, जैसे कि इंग्लैण्ड का संविधान लचीले संविधान में सभी विषयों को एक ही प्रक्रिया से संसद द्वारा चाहे जब संशोधित किया जा सकता है। लचीले संविधान में संसद सर्वोच्च होती है, न्यायालय संसद द्वारा निर्मित विधि को असंवैधानिक घोषित नहीं कर सकता।
कठोर संविधान (Rigid Constitution)
लिखित संविधान का मुख्य लक्षण उसकी कठोरता होती है, अर्थात् प्रत्येक लिखित संविधान कठोर संविधान होता है, जैसे- कनाडा, भारत आदि देशों का संविधान कठोर संविधान में संविधान सर्वोच्च विधि होती है तथा उसमें अशिष्ट प्रक्रिया से ही परिवर्तन हो सकता है। न्यायालय संविधान के अनुसार ही विधियों की व्याख्या करता है।
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भारतीय संविधान (Indian Constitution)
भारतीय संविधान कुछ अंशों में लचीला है, तो कुछ अंशों में कठोर भी है। इस प्रकार वह नम्यता और अनम्यता का अनोखा सम्मिश्रण है। भारतीय संविधान की परिवर्तनशीलता के सम्बन्ध में पं० जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि, हालांकि हम इस संविधान को इतना ठोस और स्थायी बनाना चाहते हैं, जितना कि हम बना सकें, फिर भी संविधान में कोई स्थायित्व नहीं है। उसमें कुछ सीमा तक परिवर्तनशीलता होनी ही चाहिए। यदि आप किसी वस्तु को अपरिवर्तनशील और स्थायी बना देंगे तो आप राष्ट्र की प्रगति को भी रोक देंगे और इस प्रकार की दशा में इतना अनम्य नहीं बना सकते कि वह बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित न हो सके।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया उपबन्धित की गई है। केवल संसद हो संविधान में संशोधन कर सकती है और ऐसा करते समय उसे अनु0 368 में विहित प्रक्रिया का अनुसरण करना पड़ता है। इस प्रक्रिया के अनुसार, संविधान के संशोधन के लिए कोई विधेयक संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है, किन्तु उसे प्रत्येक सदन से पारित किया जाना आवश्यक है। जिस सदन में उसे पेश किया जाय, उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत से और सदन में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से उसे पारित किया जाना आवश्यक है।
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यह विशेष बहुमत से विधेयक के पारित किए जाने की प्रक्रिया है। संविधान के अधिकांश उपबन्धों के संशोधन के लिए इसी प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है। कुछ उपबन्धों में केवल साधारण बहुमत से हो, अर्थात् किसी सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत से संशोधन किया जा सकता है। ये उपबन्ध अनुe 4,189 और 240 के हैं, किन्तु निम्नलिखित उपबन्धों में संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत के साथ कम-से-कम आधे राज्यों का अनुसमर्थन प्राप्त करना भी अनिवार्य बना दिया गया है
- अनु० 54, 55, 73, 162 या अनु० 241 या
- भाग 5 का अध्याय 4 (अर्थात् संघ न्यायपालिका से सम्बन्धित अनु० 124 से लेकर अनु० 147 तक); या
- भाग 6 के अध्याय 5 (अर्थात् राज्यों के उच्च न्यायालयों से सम्बन्धित अनु० 214 से लेकर अनु० 231 तक); या
- भाग 11 का अध्याय 1 (अर्थात् संघ और राज्यों के बीच) विधायी शक्तियों के विभाजन से सम्बन्धित (अनु० 245 से लेकर अनु० 255 तक); या
- सातवीं अनुसूची की कोई भी सूची (1) संघ सूची, (2) राज्य सूची, या (3) समवर्ती सूची या
- संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व से सम्बन्धित अनुसूची 4 या
- अनु0 368 के उपबन्ध
उपर्युक्त प्रक्रिया के अनुसार संविधान में कुछ बातों के संशोधन के सम्बन्ध में जहाँ एक और यह सचीला है, वहीं दूसरी ओर कुछ बातों के संशोधन के सम्बन्ध में वह कठोर भी है किन्तु यह न तो इतना चीला है, जितना कि इंग्लैण्ड का संविधान और न वह इतना अधिक कठोर है, जितना कि अमेरिका का संविधान है।
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