Dear Readers आज हम आप लोगो के लिए प्राचीन भारत के इतिहास से एक बहुत ही महत्वपूर्ण Topic लेकर आये है, जिसका नाम है “मगध राज्य का उत्कर्ष , हर्यक वंश ,शिशुनाग वंश, नन्द वंश और विदेशी आक्रमण”| इस Topic से हमेशा ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न बनते है| जो छात्र इस Subject से सम्बंधित प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उनके लिए आज का हमारा यह Post बहुत ही Helpful है| मगध राज्य का उत्कर्ष कैसे हुआ और कैसे मगध राज्य इस 16 महाजनपदो में से सबसे विस्तृत और शक्तिशाली राज्य के रूप में उभर कर आया था |

मगध राज्य का उत्कर्ष-
सोलह महाजनपदो में से प्रमुख प्रतिद्वंदी मगध और अवन्ति के बीच में था परंतु अंतिम विजय मगध को ही मिला,क्योंकि मगध के पास अनेक योग्य शासक जैसे बिंबसार,अजातशत्रु थे|
लोहे की खान मगध राज्य में अत्यधिक थी और वहां के जंगलों को लोहे के हथियार से उत्तर वैदिक काल काटे जाने के बाद आग लगा दिया गया जिससे वहां की जमीन में पोषक तत्व मिल गई और वहां की जमीनऔर उपजाऊ हो गई|अधिक फसल के उपज होने के कारण मगध के राजा को अधिक कर प्राप्त होने लगा जिससे मगध राज्य और शक्तिशाली हो गया चूँकि अवन्ति के पास भी लोहे के हथियार थे परंतु फिर भी वह उनका अच्छे से उपयोग ना करने के कारण हार गया|
मगध राज्य को बड़ा करने में अनेक राजाओं और राजवंशों का सहयोग मिला जो प्रमुख हैं|
हर्यक वंश -(544-440)B.C
इस वंश में 3 प्रमुख शासक हुए-
- – बिम्बिसार (544-492)B.C
- – अजातशत्रु (492-460)B.C
- – उदायिन (460-440)B.C
बिम्बिसार-
बिंबिसार ने अपने राज्य की नीव वैवाहिक संबंधों के फलस्वरुप रखें और विस्तृत कि उसने कुल तीन राजवंशो से विवाह संबंध स्थापित किया था|
- कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला से विवाह किया इसके फलस्वरूप उसे दहेज में काशी प्रांत मिला|
- वैशाली की चेटक की पुत्री चेल्लना से विवाह किया |
- मद्र देश (आधुनिक पंजाब) की राजकुमारी क्षेमा से विवाह किया|
बिंदुसार ने अवन्ति के शासक से मित्रता कर ली और जब अवन्ति के शासक पांडू रोग(पीलिया ) नामक रोग से ग्रसित हुए तो बिंबिसार ने राजवैध जीवक को उनके इलाज के लिए अवन्ति भेजा था|इन सब से वह अवंति को भी अपना महत्त्वपूर्ण सहयोगी बना लिए|
बिंबिसार ने अंग राज्य के शासक ब्रम्हादत्त को पराजित कर उसे अपने राज्य में मिला लिया इस प्रकार उसने विजय और वैवाहिक संबंधों द्वारा अपने मगध राज्य का विस्तार करता चला गया| बिंबिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने 493 ईसापूर्व की थी |
अजातशत्रु-
अजातशत्रु भारत के इतिहास में पिता की हत्या करने वाला पहला शासक माना जाता है |जब अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार की हत्या करके गद्दी पर बैठा तो कई राजवंश इससे नाराज हो गए और उसमें सबसे ज्यादा कोशल नरेश प्रसेनजित नाराज हुए और उसके पिता(बिंबिसार) को दहेज के रूप में दिया गया काशी प्रांत की मांग करने लगे|अजातशत्रु, कौशल नरेश प्रसेनजित के राज्य पर आक्रमण कर दिया और इस युद्ध में प्रसेनजित की पराजय हुई परंतु बाद में दोनों के बीच समझौता हो गया इसी समझौते के तहत प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वजीरा का विवाह अजातशत्रु के साथ कर दिया |
अजातशत्रु का वैशाली (लिछिवियो) से भी भारी मतभेद था और वैशाली राज 8 छोटे-छोटे प्रान्तों में थे जो अत्यधिक शक्तिशाली थे| परंतु अजातशत्रु ने अपने सबसे कुशल कूटनीतिज्ञ मंत्री वात्स्कर /वर्षाकर की सहायता से उन्हें भी पराजित कर लिया| इस प्रकार अजातशत्रु में काशी और वैशाली दोनों पर विजय प्राप्त कर लिया और मगध का अंग बना लिया|
अजातशत्रु के शासनकाल में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया| अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदायिन ने की थी|
उदायिन-
उदायिन ने गंगा और सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नगर की स्थापना की और बाद में अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र कर ली| उदायिन के तीन पुत्रों ने उदायिन के बाद शासन किया-
- अनिरुध
- मुण्डक
- नागदाशक/दर्शक
नागदाशक को गद्दी से हटा कर शिशुनाग ने शिशुनाग वंश की नीव राखी |
शिशुनाग वंश-
इस वश के 2- शासक हुए-
शिशुनाग-
इसने अपने शासन काल में सबसे ज्यादा लोकप्रिय काम अवन्ति पर विजय प्राप्त कर उसको अपने राज्य में शामिल करके किया था | इसने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से बदल कर वैशाली कर दिया |
कालाशोक –
इसने अपनी राजधानी पुनः वैशाली से हटाकर पाटलिपुत्र कर दी| इस प्रकार पाटलिपुत्र मगध के स्थायी राजधानी बनी |कालाशोक के शासन कल में ही द्वितीय संगीति का आयोजन हुआ था|
नन्द वंश-
नंद वंश के दो प्रमुख शासक (1) महापद्मनंद (2) घनानंद
महापद्मनंद-
महापद्मनंद मगध का सबसे शक्तिशाली शासक बनकर उभरा था इसी ने सर्वप्रथम कलिंग पर विजय की तथा वहां पर एक नहर खुदवाया वह कलिंग जिनसेन की जैन प्रतिमा भी उठा लाया था और इससे पता चलता है कि वह जैन धर्म अनुयायी था|
पुराणों में इसे एकराट् और एकछत्र शासक कहा जाता है इसका मतलब होता है कि कई राष्ट्रों पर अपनी विजय करके अपने राज्य में मिलाना|
घनानंद-
घनानंद के शासनकाल में मगध का बहुत ही बृहद विस्तार हो चुका था और उस पूरे राष्ट्र को चलाने के लिए घनानंद ने जनता पर कई प्रकार के कर लगाना प्रारंभ कर दिए जिससे जनता में असंतोष उत्पन्न होने लगा|
घनानंद शासनकाल के दौरान ही उत्तर पश्चिम भारत पर सिकंदर का भारत विजय अभियान के तहत आक्रमण हुआ| लेकिन उसके गुप्तचरों के द्वारा यह जानकारी प्राप्त की गई कि मगध के राज्य में बहुत ही अधिक सैनिक हैं, और राजा के पास अत्यधिक धन भी है, जिससे वह युद्ध काफी दिनों तक लड़ सकता है| और यह बात सिकंदर के सैनिकों को पता चल गया| सिकंदर के कई सैनिक घायल थे जिससे उन्होंने युद्ध लड़ने से मना कर दिया और व्यास नदी के पश्चिमी तट से वापस जाने का निर्णय लिया|
घनानंद के दरबार में चाणक्य/कौटिल्य/विष्णुगुप्त आया परंतु घनानंद ने उसका अपमान करके राज्य से बाहर निकाल दिया जिससे चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य की सहायता से घनानंद को गद्दी से उतार दिया और नए राजवंश मौर्य वंश की स्थापना की|
विदेशी आक्रमण-
भारत पर प्रथम आक्रमण ईरानी या फारसी हरवामनी ने किया सुके उपरांत सिकंदर ने किया था |
ईरानी आक्रमण-
सबसे पहले क्षयार्ष नामक शासक ने आक्रमण किया परंतु कोई सफलता नहीं मिली उसके उपरांत डेरियस प्रथम या दारा ने भारत पर आक्रमण किया जो कि एक ईरानी था|
सिकन्दर का आक्रमण-
- सिकंदर यूनान के मकदूनिया का रहने वाला था| वह भारत विजय का सपना लेकर भारत पर आक्रमण किया क्योंकि भारतीय महाद्वीप में काफी उपजाऊ मैदान और संसाधन उपलब्ध थे |
- तक्षशिला के शासक आम्भी सिकंदर से मिल गया जिससे सिकंदर के लिए आक्रमण आसान हो गया|
- आम्भी को ही भारत का पहला देशद्रोही कहा जाता है|
- उत्तर-पश्चिम भारत की राजनैतिक स्थिति सिकंदर के लिए काफी अनुकूल थी| वहां छोटे छोटे राजतंत्र और गणतंत्र स्थिति थे ,जिसमें आपस में संघर्ष हो रहा था, और इसका फायदा उठाकर सिकंदर ने उन पर हमला कर दिया| परंतु सिकंदर को सबसे ज्यादा विरोध पुर के राजा पोरस के द्वारा प्राप्त हुआ दोनों के बीच झेलम नदी के तट पर युद्ध हुआ जिसे हाईडेस्पीज युद्ध के नाम से जाना जाता है| इसी युद्ध में पोरस को पराजित होना पड़ा परंतु पोरस के बातचीत और व्यवहार से सिकंदर काफी प्रभावित हुआ और उसे उसका राज्य वापस कर दिया| सिकंदर जब भारत पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा तो उसके सैनिकों ने मगध के राजा घनानंद की शक्ति को देखकर अपने ही राजा के खिलाफ विद्रोह कर दिया और सिकंदर को ब्यास नदी से वापस आना पड़ा|
- सिकंदर स्थल-मार्ग से 325 ईसा पूर्व में भारत से लौट गया|
- सिकंदर की मृत्यु 323 ईसापूर्व बेबीलोन में हुआ| वह सिर्फ 33 वर्ष का था|
- सिकंदर का सेनापति सेल्यूकस निकेटर था|
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