पर्यावरण का अर्थ (Meaning of Environment)
पर्यावरण की कोई परिभाषा नहीं दी जा सकती है। पर्यावरण को परिभाषित करना एक कठिन कार्य है। पर्यावरण दो शब्दों ‘परि’ तथा ‘आवरण’ से मिलकर बना है। परि का अर्थ है चारों तरफ तथा आवरण का अर्थ है घेरा। इस प्रकार इसका शाब्दिक अर्थ है चारों तरफ का घेरा। इस तरह हम कह सकते हैं कि हमारे चारों तरफ तथा मानव निर्मित जो भी जीवित तथा अजीवित वस्तुएँ हैं, वे मिलकर पर्यावरण का निर्माण करती हैं।
पर्यावरण शब्द का इस प्रकार व्यापक अर्थ है। इसमें पर्वत, पठार, मैदान, घाटी, हवा, पानी, पेड़, पौधे, जीव-जन्तु आदि सभी शामिल हैं।
डॉ० टी० एन० खोश के अनुसार पर्यावरण को उन सभी स्थितियों तथा प्रभावों के योग जो सभी अंगों के विकास तथा जीवन को प्रभावित करते हैं, के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
सी० सी० पार्व के अनुसार पर्यावरण का अर्थ उन दशाओं के योग से होता है जो मनुष्य को निश्चित समय में निश्चित स्थान पर आवृत्त करती हैं।
Environment refers to the sum total of conditions, which surround man at a given point in space and time.
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (The Environment (Protection) Act, 1986) की धारा 2 (a) के अनुसार पर्यावरण में जल, वायु तथा भूमि और अन्तर्सम्बन्ध शामिल हैं, जो जल, वायु तथा भूमि और मानव जीव, अन्य जीवित प्राणियों, पादपों, सूक्ष्म जीवों और सम्पत्ति के मध्य विद्यमान हैं।
“Environment” includes water, air, and land and the inter-relationship which exists among and between water, air and land, and human beings, other living creatures, plants, micro-organisms and property.
इस प्रकार सामान्य रूप में किसी स्थान विशेष में मनुष्य के आसपास भौतिक वस्तुओं जिनमें स्थल, जल, मृदा तथा वायु सम्मिलित हैं, का आवरण जिसके द्वारा मनुष्य घिरा होता है, को पर्यावरण कहा जा सकता है।
पर्यावरण विश्व का समग्र दृष्टिकोण है जिसे सामान्य रूप से इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है कि पर्यावरण एक अविभाज्य समष्टि है। अस्तु पर्यावरण एक अत्यन्त जटिल घटना (Phenomenon) है। इसको समझने के लिए निम्नलिखित के बारे में जानना आवश्यक है।
- पारिस्थितिक तन्त्र (Ecosystem)
- पारिस्थितिकी (Ecology)
- जैव मण्डल (Biosphere)
पारिस्थितिक तन्त्र (Ecosystem)
पारिस्थितिक तन्त्र जटिल पारिस्थितिकीय समुदाय है जो पादप, जन्तु और सूक्ष्म जीव समुदायों और उनके अजीवित पर्यावरण, जो एक दूसरे पर प्रभाव रखने वाले हैं, उनकी कार्यशील इकाई का समष्टि है। सामान्य क्षेत्र में रहने वाले एक दूसरे पर प्रभाव रखने वाले पादपों और पशुओं के जैविक समुदाय और भौतिक पर्यावरण जिनमें स्थल, जल और वायु जैसे अजैव तत्व सम्मिलित हैं, एक साथ मिलकर परितंत्र बनाते हैं। पारिस्थितिक तन्त्र दो प्रमुख भागों से बना होता है।
- (i) जीवोम या बायोम (किसी खास क्षेत्रीय इकाई के पौधों और जन्तुओं के समस्त जटिल समूह) तथा
- (ii) निवास्य क्षेत्र (Habitat), भौतिक पर्यावरण।
इस तरह के पारिस्थितिक तंत्र के सभी भागों-जैविक एवं अजैविक, बायोम तथा निवास्य क्षेत्र को परस्पर क्रियाशील कारक समझना चाहिये जो एक प्रौढ़ पारिस्थितिक तंत्र में, लगभग संतुलित दशा में होते हैं। इन कारकों की पारिस्थितिक क्रियाओं द्वारा ही समस्त तंत्र कायम रहता है। पारिस्थितिक तंत्र स्थिर नहीं रहता है। इसमें लगातार एक दूसरे रूप में परिवर्तन होता रहता है। यह महत्वपूर्ण है कि पारिस्थितिक तंत्र के एक भाग में छोटे से परिवर्तन को सम्पूर्ण तंत्र में अनुभव किया जाता है। लेकिन पारितंत्र यथासम्भव स्थिरता को यथासम्भव बनाये रखने का प्रयास करता है। तंत्र की स्थिरता उसकी विभिन्नता पर निर्भर करती है। पारितंत्र में जितनी अधिक निर्भरता होगी, उतना ही अधिक परिवर्तन में प्रतिरोध करने की क्षमता होगी।
किसी क्षेत्र में रहने वाले जीव एक दूसरे को प्रभावित करते हैं क्योंकि उनमें आपस में तथा भौतिक पर्यावरण के साथ पदार्थ और ऊर्जा का आदान-प्रदान होता रहता है। निरन्तर पारस्परिक क्रिया के कारण पारिस्थितिक तंत्र भी उतना ही गतिशील है जितना कि भौतिक पर्यावरण। अतएव विभिन्न जीव भौतिक पर्यावरण के किसी भी परिवर्तन के अनुसार अपने आपको ढाल लेते हैं।
2. पारिस्थितिकी (Ecology)
पारिस्थितिकी का अर्थ जीवित जैविकों के प्रतिवेश, उनके निवास के ढंगों इत्यादि के सम्बन्ध को विस्तारित करने वाली जीव विज्ञान की शाखा है।
ई० पी० ओडम ने पारिस्थितिकी की परम्परागत परिभाषा (जीवों तथा पर्यावरण अन्तर्सम्बन्धों के विज्ञान के रूप में) को पुनः निरूपित करते हुये प्रतिपादित किया कि जैविक तथा अजैविक (भौतिक) संघटक एक दूसरे से न केवल अन्तर्सम्बन्धित होते हैं वरन् ये दोनों संघटक एक निश्चित तंत्र की भाँति क्रमबद्ध रूप में कार्यशील भी होते हैं। अतः ओडम के अनुसार “पारिस्थितिकी” पारिस्थितिक तंत्र की संरचना एवं कार्य का अध्ययन है या “पारिस्थितिकी’ प्रकृति की संरचना तथा कार्य का अध्ययन है।
3. जैव मण्डल (Biosphere)
जैव मण्डल पृथ्वी की सतह तथा वातावरण का भाग है। जिसमें जीवित चीजें निवास करती हैं। पृथ्वी के सभी पारितंत्र जैवमंडल को बनाते हैं जिसमें वातावरण अर्थात् वायु का क्षेत्र, जलमंडल अर्थात् जल का क्षेत्र और स्थलमंडल अर्थात् चट्टानों का कतिपय भाग शामिल है। अतएव यदि इनमें से एक का पृथ्वी के संघटन में से विवर्जन हो जाता है तो वर्तमान रूप में जीवन का अस्तित्व भी विलुप्त हो जाएगा। साँस लेने के लिए मनुष्य वायु पर निर्भर है, जल को वह पीता है, सूर्य के प्रकाश से वह अपने को गर्म रखता है और भोजन को वह खाता है। ये सब मनुष्य को उसके तत्काल भौतिक तथा जैव पर्यावरण से आबद्ध करते हैं। जिससे उसकी जीवन लीला चलती रहती है।
परिसीमन कारक (Limiting Factors)
मानवीय पर्यावरण, चाहे प्राकृतिक स्थिति में हो या मनुष्य के क्रिया-कलाप द्वारा उपान्तरित स्थिति में, प्रबन्ध या पदार्थ तथा ऊर्जा का जटिल संघटक है और उसे उस अन्तर्क्रिया द्वारा बनाये रखा गया है, जो उनके बीच होती है। क्रियाशीलता तथा परिवर्तन दोनों निरन्तर होते रहते हैं। परिसीमनकारी कारक के पारिस्थितिकी सिद्धान्त को ई० पी० ओडम (E.P. Odum) द्वारा निम्नलिखित रूप में अधिकथित किया गया है कि
“जैविक या जैविकों के समूह की उपस्थिति और सफलता की स्थितियों की जटिलता पर आधारित है। कोई स्थिति जो सहन की सीमा तक पहुंचती है या उल्लंघन करती है, परिसीमनकारी स्थिति का परिसीमनकारी कारक कही जाती है।”
परिसीमनकारी कारकों का यह पारिस्थितिकी सिद्धान्त और इस तथ्य का हमारा ज्ञान, कि पृथ्वी आकार में सीमित है और ऊर्जा तथा पदार्थों की आपूर्ति में हमें यह स्वीकार करने के लिए बाध्य करती है कि विकास तथा विस्तार समाप्त हो जायेगा, अन्यथा आपूर्ति माँग को पूरा करने में समर्थ नहीं होगी और वह अत्यन्त खतरनाक स्थिति उत्पन्न करेगी। तीन अत्यन्त महत्वपूर्ण कारक, जो पर्यावरण को प्रभावित करते हैं, निम्नलिखित हैं
हड़प्पा सभ्यता की विशेषतायें बताइये।
- जनसंख्या में वृद्धि,
- प्रौद्योगिकी का अविवेकपूर्ण प्रयोग, और
- भूमि के प्रयोग पर नियंत्रण की कमी।
ये सभी कारक समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। किसी एक कारक के प्रति ध्यान इसमें कमी करेगा किन्तु पर्यावरण सम्बन्धी समस्या का समाधान नहीं करेगा।
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