अधिनियम 1986 के उपबन्धों तथा नियमों, आदेशों के उल्लंघन पर दण्ड – पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम का महत्वपूर्ण उद्देश्य उन लोगों को, जो मानवीय पर्यावरण तथा सुरक्षा, और स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न करते हैं, भयकारी दण्ड देना है तद्नुसार धारा 15 में उपबन्ध किया गया है कि जो कोई इस अधिनियम के उपबन्धों अथवा उसके अधीन बनाये गये आदेशों या निर्देशों का उल्लंघन करेगा अथवा उनका पालन करने में असफल रहेगा, ऐसे प्रत्येक उल्लंघन या असफलता के लिए ऐसी अवधि के कारावास से, जो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी अथवा ऐसे जुर्माने से, जो एक लाख रुपये तक का हो सकेगा अथवा दोनों से दण्डित किया जा सकेगा और यदि ऐसा उल्लंघन या असफलता जारी रहती है तो ऐसे अतिरिक्त जुर्माने से, जो प्रथम सफलता के दोषसिद्ध किये जाने के पश्चात् ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जिसके दौरान ऐसी असफलता जारी रहती है, पाँच हजार रुपये तक के जुर्माने से दण्डनीय होगा। लेकिन निर्दिष्ट असफलता अथवा उल्लंघन यदि दोषसिद्धि की तिथि से एक वर्ष पश्चात् भी जारी रहती है तो अपराधी दोषसिद्धि पर कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डनीय होगा।
यह धारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के भयकारी प्रभाव का न्यूनन कर देती है क्योंकि अपराधी अन्य अधिनियम में भी दण्डित किया जायेगा जिसमें विहित दण्ड कम होगा। इसके अतिरिक्त अधिनियम में अधिकतम दंड तो विहित किया गया है किन्तु न्यूनतम दण्ड का उल्लेख नहीं किया गया है।
कम्पनी द्वारा अपराध (Offence by companies)
जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है वहाँ प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध के किये जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिए उस कम्पनी का सीधे भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कम्पनी भी, ऐसे अपराध के दोषी समझे जायेंगे और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किये. जाने के भागी होंगे।
परन्तु कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को इस अधिनियम के अधीन उपबंधित किसी दण्ड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी।
शासकीय विभागों द्वारा अपराध (Offence by Government Department)
जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी सरकारी विभाग द्वारा किया गया है वहाँ विभागाध्यक्ष को दोषी समझा जायेगा और वह तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किये जाने का भागी होगा। परन्तु वह दंड का भागी नहीं होगा यदि वह यह साबित कर दे
- कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था, या
- कि उसने ऐसा अपराध किये जाने का निवारण करने की सब सम्यक् तत्परता बरती थी।
यदि यह साबित हो जाता है कि विभाग द्वारा अपराध विभागाध्यक्ष से भिन्न किसी अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है, तो ऐसा अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा। जायेगा और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किये जाने का भागी होगा।