सदोष लाभ तथा सदोष हानि – धारा 23 के अनुसार “सदोष अभिलाभ विधि-विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति का अभिलाभ है जिसका वैध रूप से हकदार अभिलाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति नहीं है। सदोष हानि विधि-विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति की हानि है जिसका वैध रूप से हकदार हानि उठाने वाला व्यक्ति हो।”
सदोष लाभ प्राप्त करना व सदोष हानि उठाना कोई व्यक्ति सदोष लाभ प्राप्त करता है। तब कहा जाता है जबकि वह व्यक्ति सदोष रखे रहता है और तब भी जबकि वह व्यक्ति सदोष अर्जन करता है। कोई व्यक्ति सदोष हानि उठाता है यह तब कहा जाता है जबकि उसे किरी, सम्पत्ति से सदोष अलग रखा जाता है और तब भी जब कि उसे किसी सम्पत्ति से सदोष वंचित किया जाता है।
अपराध-विधि में केवल उन कार्यों के खिलाफ हो कार्यवाही की जाती है जो कानून के विरुद्ध है। इसी सिद्धान्त को धारा 23 में उपबन्धित किया गया है। सदोष को निर्धारित करने की कसौटी हो विधि-विरुद्ध है। सदोष लाभ अथवा सदोष हानि दोनों मामलों में सम्पत्ति अपने स्वामी से अपहृत होती है अर्थात् उसका वास्तविक स्वामी गलत ढंग से उस सम्पत्ति से अलग कर दिया जाता है, ऐसे मामलों में जबकि हकदार को अपनी सम्पत्ति पर इस अभिप्राय से स्वत्व नहीं प्राप्त करने दिया जाता है कि वह उस सम्पति को अधिकार में रखने के उपरान्त होने वाले लाभ से वंचित रहे, भले ही ऐसा अस्थायी समय के लिए ही किया गया हो।
“सदोष’ शब्द को दण्ड प्रक्रिया संहिता में कहाँ भी परिभाषित नहीं किया गया है। यद्यपि ‘अवैध’ शब्द को धारा 43 में परिभाषित कर दिया गया है। साधारण शब्दों में ‘सदोष’ शब्द का अर्थ है किसी पक्षकार के विधिक अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालना। इस प्रकार, दोषपूर्ण अभिलाभ विधि-विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पति का अभिलाभ है जिसका वैध रूप से हकदार अभिलाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति नहीं है तथा दोषपूर्ण हानि विधि विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पति की हानि है जिसका वैध रूप से हकदार हानि उठाने वाला व्यक्ति ही है।
संविधान द्वारा मूल अधिकारों की गारन्टी Guarantee of Fundamental Rights by Constitution
निर्णीत वाद (Decided Cases)
प्रेमनाथ बनर्जी बनाम राज्य, (1966, 5W.R. Cr. 68) के मामले में अभियुक्त द्वारा किसी विधवा से उसके मृतक पति द्वारा देय की दृष्टि में उसके बैलों को अवैध तरीके से एवं बलपूर्वक प्राप्त करने को दोषपूर्ण हानि माना गया। अतः दोनों प्रकार के मामलों में सम्पति के स्वामी को हानि हो होती है। सदोष लाभ के मामले में लाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति उसका वैध रूप से अधिकारी नहीं होता तथा सदोष हानि के मामले में हानि प्राप्त करने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से हानि उठाने का अधिकारी नहीं होता। इस प्रकार, सदोष लाभ एवं सदोष हानि में दो प्रकार के मामले आते हैं- (i) सम्पत्ति का सदोष निरोध में रखा जाना एवं (ii) सम्पत्ति का सदोष अलग किया जाना [ कृष्ण कुमार बनाम स्टेट, [1960 एस० सी० आर० 452]।