शरणार्थी का अर्थ (Meaning of Refugee) – शरणार्थी से वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जो अपने देश एवं अपना स्थाई निवास उत्पीड़न या सैन्य कार्यवाही से बचने के लिए छोड़ देता है। जुलाई 28, 1951 के शरणार्थी के प्रास्थिति से संबंधित अभिसमय में शरणार्थी की परिभाषा निम्नलिखित शब्दों में दी गयी है।
‘जनवरी, 1, 1951 के पूर्व होने वाली घटनाओं के परिणामस्वरूप और मूलवंश, धर्म, राष्ट्रीयता के कारण उत्पीड़न से सुस्थापित या राजनीतिक अभिमत का सदस्य अपनी राष्ट्रीयता के देश के बाहर है और असमर्थ, या ऐसे भय के कारण उस देश का संरक्षण लेने में अनिच्छुक है या जो राष्ट्रीयता न होने के कारण और ऐसी घटनाओं के परिणामस्वरूप अपने पूर्व स्थाई निवास के देश के बाहर है, असमर्थ है, या ऐसे भय के कारण कि उस देश में वापस जाने के लिए अनिच्छुक है।’ इस प्रकार शरणार्थी की प्रास्थिति से संबंधित अभिसमय उन लोगों पर लागू है, जो 1 जनवरी, 1951 के पूर्व होने वाली घटनाओं के
कारण शरणार्थी हो गये थे। इस अभिसमय के साथ 31 जनवरी, 1967 को एक प्रोटोकाल जोड़ दिया गया है, जिनमें अभिसमय को उन व्यक्तियों तक विस्तारित कर दिया गया है, जो 1 जनवरी, 1951 के पश्चातवर्ती घटनाओं के कारण शरणार्थी हो गये।
शरणार्थी की प्रास्थिति से संबंधित अभिसमय के अनुसार शरणार्थी वे व्यक्ति हैं, जो अपनी राष्ट्रीयता के देश के संरक्षण से वंचित हैं या जहाँ उनकी कोई राष्ट्रीयता नहीं है कि उन्हें पूर्व स्थाई निवास के देश का संरक्षण हो। स्थिति का सारांश मूल वंश, धर्म, राष्ट्रीयता, विशिष्ट सामाजिक समूह या राजनीतिक अभिमत की सदस्यता के कारण उत्पीड़न का भय है ।
शरणार्थियों के अधिकार एवं कर्त्तव्य ( दायित्व ) ( Rights and duties (Responsibilities) of a Refugee) –
शरणार्थियों के अधिकार
अभिसमय में अपवर्णित शरणार्थियों के न्यूनतम अधिकारों को संहिताबद्ध किया गया है, जो इस प्रकार हैं
- कार्य करने का अधिकार,
- शिक्षा का अधिकार,
- सामाजिक सुरक्षा का अधिकार,
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार और
- न्यायालय पहुँचने का अधिकार
शरणार्थियों की प्रास्थिति से संबंधित प्रोटोकाल में, जिसने 1951 के अभिसमय के क्षेत्र को विस्तारित किया, कहा गया है कि इस प्रोटोकाल के राज्य पक्षकार शरणार्थियों के साथ उसी तरह व्यवहार करेंगे, जैसे अपने नागरिकों के साथ, ताकि सभी शरणार्थियों को समान प्रास्थिति का उपयोग उपलब्ध हो सके।
शरणार्थियों के कार्य या दायित्व
शरणार्थियों पर 1951 के संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के अनुच्छेद 2 के अनुसार जिस देश में शरणार्थी प्रवेश करते हैं उन्हें वहाँ की विधि एवं नियमों का आदर करना चाहिए तथा उन्हें कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जो उनकी शरणार्थी की प्रास्थिति के अनुकूल न हो।