'उच्चतम न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय है' इस कथन की व्याख्या कीजिए।

‘उच्चतम न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय है’ इस कथन की व्याख्या कीजिए।(Supreme Court is the Court of Record’ Explain this statement.)

उच्चतम न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय – अनु० 129 उच्चतम न्यायालय को एक अभिलेख न्यायालय घोषित करता है और उसे अपने अवमान के लिये दंडित करने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां भी प्रदान करता है।

अभिलेख न्यायालय का अर्थ यह होता है कि उसके अभिलेख प्रामाणिक (authoritative) माने जाते हैं और वे सुरक्षित रखे जाते हैं और उसके निर्णयों को नजीरों (precedent) के रूप में अधीनस्थ न्यायालयों के सामने पेश किया जाता है। इन नजीरों से अधीनस्थ न्यायालय बाध्य होते हैं।

अभिलेख न्यायालय को स्वयं अपनी प्रकृति में निहित अपने अवमान के लिये किसी वरिष्ठ को दण्ड देने की शक्ति प्राप्त होती है फिर भी अनु० 129 अभिव्यक्त रूप से यहmशक्ति उच्चतम न्यायालय को प्रदान करता है। इस प्रयोजन के लिये ‘न्यायालय अवमान अधिनियम 1971 भी पारित किया गया

इस अधिनियम के अंतर्गत न्यायालय अवमान मामले को प्रकृति के अनुसार दो प्रकार का है- (1) दीवानी अवमान तथा (2) फौजदारी अवमान होता है और उसके लिये 6 माह तक के कारावास को सजा या 2000 रुपये तक जुर्माना की सजा या दोनों सजायें दी जा सकती हैं। न्यायालय के न्यायाधीशों को भी अपने न्यायालयों के अवमान के लिये दण्डित किया जा सकता है।

आपराधिक बल एवं हमले की परिभाषा उदाहरण सहित समझाइये तथा इन दोनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

दिल्ली न्यायिक सेवा संघ तीस हजारी न्यायालय बनाम गुजरात राज्य, ए० आई० आर० 1991 एस० सी० 2177 के मामले में राजस्थान के नादियाड शहर के पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध वहाँ के मुख्य न्यायिक जज श्री पटेल को अनुचित ढंग से मारने, हथकड़ी लगाने और जबरदस्ती शराब पिला कर आपराधिक मामला दर्ज करने के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाई चलाई गयी थी। अनेक अधिवक्ता संघों ने उच्चतम न्यायालय में अनु० 32 के अधीन याचिका फाइल करके न्यायपालिका की गरिमा एवं स्वतन्त्रता की रक्षा हेतु पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की प्रार्थना की। उच्चतम न्यायालय ने न्यायिक जज के न्यायालय की अवमानना के लिए पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध नोटिस जारी किया। पुलिस अधिकारियों ने यह तर्क दिया कि यह अनु० 20 (3) का उल्लंघन था क्योंकि उनके विरुद्ध पहले से ही आपराधिक कार्यवाही चल रही थी। यह अभिनिर्धारित किया गया कि अवमानना की नोटिस जारी करने और जाँच आयोग के समक्ष उपस्थित होने के लिये कहने मात्र से पुलिस अधिकारीगण “अभियुक्त” नहीं हो जाते हैं। ऐसी दशा में उन्हें अनु० 20 (3) का संरक्षण नहीं प्राप्त होगा। अवमानना की कार्यवाही आपराधिक कार्यवाही नहीं होती है।

एस० सी० बार एसोसियेशन बनाम भारत संघ, ए० आई० आर० 1998 एस० सी० 1895 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अवधारित किया कि अनु० 129 के तहत न्यायालय की अवमानना के लिये दण्डित करने की शक्ति विस्तृत है परंतु प्रक्रिया के अधीन है।

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